गायत्री मंत्र - गूढ़ अर्थ (न कि शाब्दिक अर्थ)
ॐ प्रथम स्पन्दन है, अर्थात प्रणव, जो निरपेक्ष सर्वव्यापी सत्ता का प्रषेपण है, इसलिए मंत्र का प्रारम्भ इससे होता है। इस मंत्र में सात महत्वपूर्ण शब्द हैं, जो परमेश्रवर के साथ सात चरणों में एकात्मता का वर्णन करते हैं। यह सात शब्द हैं भू, भुवर, स्वर, वितु, वरेण्य, भर्गो और देव जो सप्तलोक का उद्घोष करते हैं। (१) भूलोक अर्थात यह पंचमहाभूत से बना भौतिक संसार, (२) भुवरलोक अर्थात सूक्ष्म संसार और (३) स्वरलोक अर्थात कारण संसार। इस प्रकार सृष्टि की रचना त्रिलोकी तरह से गूंथी हुई है। (४) वितु का अर्थ है, स्वयं का प्रकाश या आत्मबोध या महरलोक, (५) वरेण्यम् का मतलब है श्रेष्ठ, या आत्मबोध ब्रह्मअंश के रूप में, या ज्ञानलोक, (६) भर्गो का अर्थ है पापरहित नित्यशुद्धि वह परमात्मा या तपोलोक और (७) देवस्य का अर्थ है परम सत्य या देवत्व के साथ कैवल्यम की सतलोक में प्राप्ति। तत् स - शब्द का अर्थ है वह परमात्मा या शिव। धीमहि - अर्थात हमारे भीतर धारण और धियो योनः - का अर्थ है जो हमारी चेतना , एवं प्रचोदयात् - अर्थात धर्म के सीधे रास्ते पर, यानि रीढ़ के अतंर में स्थित सुष्मना नाड़ी का मार्ग। *****************...