पुराणों में लिखे उपाय से करें अपनी गरीबी का नाश
दरिद्रतानाशक सूक्त
दरिद्रता (गरीबी) का यहां तक महत्व है कि अति प्राचीन परम पवित्र ऋग्वेद तक में उसके निवारण के लिए एक सूक्त पाया जाता है जो निम्र प्रकार है :
अरायि काणे विकटे गिरिं गच्छ सदन्वे।
शिरिन्विठस्य सत्वभिस्तेभिष्ट्रवा चातयामासि।।
चत्तो इतश्चत्तामुत: सर्वा भ्रूणान्यारुषी।
अराय्यं ब्रह्मणस्पते तीक्ष्ण-शृडगोदषन्निहि।
अदो यद्दारु प्लवते सिन्धो पारे अपूरूषम्।
तदा रभस्व दुर्हणो तेन गच्छ परस्तरम्।।
यद्ध प्राचीरजगन्तोरो मंडूर-धाणिको:।
हत इंद्रस्य शत्रव: सर्वे बुद्बुदयाशव:।।
‘‘दरिद्रते! तुम दान विरोधिनी, कुशब्द वाली, विकट आकार वाली और क्रोधिनी हो। मैं (शिरिन्विठ) ऐसा उपाय करता हूं, जिससे तुम्हें दूर करूंगा। दरिद्रता वृक्ष, लता, शस्य आदि का अंकुर नष्ट करके दुॢभक्ष ले आती है। उसे मैं इस लोक और उस लोक से दूर करता हूं। तेजशाली ब्रह्मणस्पति! दान- द्रोहिणी इस दरिद्रता को यहां से दूर कर आओ। यह जो काष्ठ समुद्र-तट के पास बहता है, उसका कोई कर्ता (स्वामी) नहीं है। विकृत आकृति वाली अलक्ष्मी (दरिद्रता)! इसी के ऊपर चढ़कर समुद्र के दूसरी ओर चली जाओ। हिंसामयी और कुत्सित शब्द वाली अलक्ष्मियो! जिस समय तत्पर होकर तुम लोग शीघ्र गमन से चली गईं उस समय इंद्र (आर्य) के सब शत्रु जल-बुद्बुद के समान विलीन हो गए।’’
इसका यथाशक्ति जप करें।
दरिद्रता (गरीबी) का यहां तक महत्व है कि अति प्राचीन परम पवित्र ऋग्वेद तक में उसके निवारण के लिए एक सूक्त पाया जाता है जो निम्र प्रकार है :
अरायि काणे विकटे गिरिं गच्छ सदन्वे।
शिरिन्विठस्य सत्वभिस्तेभिष्ट्रवा चातयामासि।।
चत्तो इतश्चत्तामुत: सर्वा भ्रूणान्यारुषी।
अराय्यं ब्रह्मणस्पते तीक्ष्ण-शृडगोदषन्निहि।
अदो यद्दारु प्लवते सिन्धो पारे अपूरूषम्।
तदा रभस्व दुर्हणो तेन गच्छ परस्तरम्।।
यद्ध प्राचीरजगन्तोरो मंडूर-धाणिको:।
हत इंद्रस्य शत्रव: सर्वे बुद्बुदयाशव:।।
‘‘दरिद्रते! तुम दान विरोधिनी, कुशब्द वाली, विकट आकार वाली और क्रोधिनी हो। मैं (शिरिन्विठ) ऐसा उपाय करता हूं, जिससे तुम्हें दूर करूंगा। दरिद्रता वृक्ष, लता, शस्य आदि का अंकुर नष्ट करके दुॢभक्ष ले आती है। उसे मैं इस लोक और उस लोक से दूर करता हूं। तेजशाली ब्रह्मणस्पति! दान- द्रोहिणी इस दरिद्रता को यहां से दूर कर आओ। यह जो काष्ठ समुद्र-तट के पास बहता है, उसका कोई कर्ता (स्वामी) नहीं है। विकृत आकृति वाली अलक्ष्मी (दरिद्रता)! इसी के ऊपर चढ़कर समुद्र के दूसरी ओर चली जाओ। हिंसामयी और कुत्सित शब्द वाली अलक्ष्मियो! जिस समय तत्पर होकर तुम लोग शीघ्र गमन से चली गईं उस समय इंद्र (आर्य) के सब शत्रु जल-बुद्बुद के समान विलीन हो गए।’’
इसका यथाशक्ति जप करें।
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