सूर्य को अर्घ्य देने का विधान..............

पूजा कर्म में सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। धार्मिक रूप से ही नहीं वैज्ञानिक रूप से भी यह सिद्ध हो चुका है कि सूर्य की किरणों का प्रभाव जल पर अतिशीघ्र पड़ता है इसलिए सूर्य को अभिमंत्रित जल का अर्घ्य दिया जाता है। निम्न प्रकार से सूर्य को अर्घ्य देकर प्रणाम करने वाले की विप्पतियां दूर होती हैं, साधना के मार्ग में जो विघ्न आ रहें हो वो दूर हो जाते हैं। अर्घ्य देने के बाद नाभि व भ्रूमध्य (भौहों के बीच) पर सूर्यकिरणों का आवाहन करने से क्रमशः मणिपुर व आज्ञाचक्रों का विकास होता है। इससे बुद्धि कुशाग्र होती है। भविष्य पुराण के मुताबिक हर रोज श्रद्धा व आस्था से सूर्य पूजा के शुभ प्रभाव से सूर्य भक्त कई शक्तियों व गुणों का स्वामी बन जाता है। इससे सांसारिक जीवन में बेजोड़ सफलता व प्रतिष्ठा मिलती है।
सूर्य अर्घ्य देने की विधि......................
- सुबह सूर्योदय से पहले उठें शुद्ध होकर स्नान करें।
- चढ़ते सूर्य के समक्ष आसन लगाएं।
- आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में शुद्ध जल लेकर उसमें मिश्री मिलाएं।
- मान्यता है कि सूर्य को मीठा जल चढ़ाने से जन्मकुंडली में दूषित मंगल ग्रह का उपचार होता है।
- मंगल शुभ होने से उसकी शुभता में वृद्दि होती है।
- जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्यागमन से पहले नारंगी किरणें प्रस्फूटित होती दिखाई दें आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़कर इस तरह जल चढ़ाएं कि सूर्य जल चढ़ाती धार से दिखाई दें और जलधारा आसन पर ही गिरे ना कि जमीन पर।
- जमीन पर जलधारा गिरने से जल में समाहित सूर्य- ऊर्जा धरती में चली जाएगी और सूर्य अर्घ्य का संपूर्ण लाभ आप नहीं पा सकेंगे।
- आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए सुबह के समय सूर्यागमन के दर्शन करें। अर्घ्य देते समय निम्न मंत्रों में से किसी एक मंत्र का पाठ करें
- 'ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।। (11 बार)
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा : ।। ( 3 बार)
सूर्य अर्घ्य के उपरांत
- सीधे हाथ की अंजली में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें।
- अपने स्थान पर ही तीन बार घुम कर परिक्रमा करें।
- आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें।

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