हनुमानजी की पूजा स्त्रियां नहीं कर सकतीं जो कि बिलकुल मिथ्या है।
हनुमानजी की पूजा स्त्रियां नहीं कर सकतीं जो कि बिलकुल मिथ्या है। प्रत्येक स्त्री व पुरुष हनुमानजी की साधना या प्रयोग कर सकता है बशर्ते उसकी पूर्ण श्रद्धा हो। अशुद्ध अवस्था तो स्त्री पुरुष दोनों के लिए वर्जित है। साधना करने वाले को प्रभु श्री हनुमान जी का प्रयोग करने के एक दिन पूर्व एवं एक दिन बाद तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए किसी भी प्राणी मात्र का दिल नहीं दुखाना चाहिए। साधना करने वाले को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ सात्विक रहते हुए साधना करनी चाहिए।
हनुमान चालीसा का यह प्रयोग सकाम प्रयोग तथा निष्काम प्रकार दोनों रूप में होता है. इस लिए साधक को अनुष्ठान करने से पूर्व अपनी कामना का संकल्प लेना आवश्यक है। अगर कोई विशेष इच्छा के लिए प्रयोग किया जा रहा हो तो साधक को संकल्प लेना चाहिए कि :-
“ मैं अमुक नाम का साधक यह प्रयोग अमुक कार्य के लिए कर रहा/रही हूँ , प्रभु अंजनी लाल श्री हनुमान मुझे इस हेतु सफलता के लिए शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करें। ” परन्तु यदि साधक निष्काम भाव से यह प्रयोग कर रहा है तो संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।
साधक अगर सकाम रूप से साधना कर रहा है तो साधक को अपने सामने भगवान हनुमान का वीर भाव से युक्त चित्र स्थापित करना चाहिए. अर्थात जिसमे वह पहाड़ को उठा कर ले जा रहे हो या असुरों का नाश कर रहे हो. लेकिन अगर निष्काम साधना करनी हो तो साधक को अपने सामने दास भाव युक्त हनुमान का चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमे वह ध्यान मग्न हो या फिर अपने प्रभु श्रीरामजानकी के चरणों में बैठे हुये हो।
साधक को यह क्रम एकांत में करना चाहिए, अगर साधक अपने कमरे में यह क्रम कर रहा हो तो जाप के समय उसके साथ कोई और दूसरा व्यक्ति नहीं होना चाहिए। याद रखे - इस प्रयोग के लिए शांति , एकांत , श्रद्धा एवं ब्रह्मचर्य का होना अति आवश्यक है। सकाम उपासना में वस्त्र लाल रहे निष्काम में भगवे रंग के वस्त्रों का प्रयोग होता है. दोनों ही कार्य में दिशा उत्तर रहे. साधक को भोग में गुड तथा उबले हुये चने अर्पित करने चाहिए। कोई भी फल अर्पित किया जा सकता है। साधक दीपक तेल या घी का लगा सकता है। साधक को आक के पुष्प या लाल रंग के पुष्प समर्पित करने चाहिए।
यह प्रयोग साधक किसी भी मंगलवार की रात्रि को करे तथा समय १० बजे के बाद का रहे। सर्व प्रथम साधक स्नान आदि से निवृत हो कर वस्त्र धारण कर के लाल आसान पर बैठ जाये। साधक अपने पास ही आक के १०० पुष्प रख ले। तत्पश्चात अपने सामने किसी बाजोट पर या पूजा स्थान में लाल वस्त्र बिछा कर उस पर हनुमानजी का चित्र या यन्त्र या विग्रह को स्थापित करे। उसके बाद दीपक जलाये।
साधक गुरु पूजन गुरु मंत्र का जाप कर हनुमानजी का सामान्य पूजन करे। इस क्रिया के बाद साधक ‘हं’ बीजमंत्र का उच्चारण कुछ देर करे।
इसके बाद साधक हाथ में जल ले कर संकल्प करे तथा अपनी मनोकामना बोले. इसके बाद साधक राम रक्षा स्तोत्र या ‘रां रामाय नमः’ का यथा संभव जाप करे। जाप के बाद साधक अपनी तीनों नाडी अर्थात इडा पिंगला तथा सुषुम्ना में श्री हनुमानजी को स्थापित मान कर उनका ध्यान करे. तथा हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दे। साधक को उसी रात्रि में १०० बार पाठ करना है. हर एक बार पाठ पूर्ण होने पर एक पुष्प हनुमानजी के यंत्र/चित्र/विग्रह को समर्पित करे. इस प्रकार १०० बार पाठ करने पर १०० पुष्प समर्पित करने चाहिए. १०० पाठ पुरे होने पर साधक वापस ‘हं’ बीज का थोड़ी देर उच्चारण करे तथा जाप को हनुमानजी के चरणों में समर्पित कर दे।
इस प्रकार यह प्रयोग पूर्ण होता है। साधक दूसरे दिन पुष्प का विसर्जन कर दे।
हनुमान चालीसा का यह प्रयोग सकाम प्रयोग तथा निष्काम प्रकार दोनों रूप में होता है. इस लिए साधक को अनुष्ठान करने से पूर्व अपनी कामना का संकल्प लेना आवश्यक है। अगर कोई विशेष इच्छा के लिए प्रयोग किया जा रहा हो तो साधक को संकल्प लेना चाहिए कि :-
“ मैं अमुक नाम का साधक यह प्रयोग अमुक कार्य के लिए कर रहा/रही हूँ , प्रभु अंजनी लाल श्री हनुमान मुझे इस हेतु सफलता के लिए शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करें। ” परन्तु यदि साधक निष्काम भाव से यह प्रयोग कर रहा है तो संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।
साधक अगर सकाम रूप से साधना कर रहा है तो साधक को अपने सामने भगवान हनुमान का वीर भाव से युक्त चित्र स्थापित करना चाहिए. अर्थात जिसमे वह पहाड़ को उठा कर ले जा रहे हो या असुरों का नाश कर रहे हो. लेकिन अगर निष्काम साधना करनी हो तो साधक को अपने सामने दास भाव युक्त हनुमान का चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमे वह ध्यान मग्न हो या फिर अपने प्रभु श्रीरामजानकी के चरणों में बैठे हुये हो।
साधक को यह क्रम एकांत में करना चाहिए, अगर साधक अपने कमरे में यह क्रम कर रहा हो तो जाप के समय उसके साथ कोई और दूसरा व्यक्ति नहीं होना चाहिए। याद रखे - इस प्रयोग के लिए शांति , एकांत , श्रद्धा एवं ब्रह्मचर्य का होना अति आवश्यक है। सकाम उपासना में वस्त्र लाल रहे निष्काम में भगवे रंग के वस्त्रों का प्रयोग होता है. दोनों ही कार्य में दिशा उत्तर रहे. साधक को भोग में गुड तथा उबले हुये चने अर्पित करने चाहिए। कोई भी फल अर्पित किया जा सकता है। साधक दीपक तेल या घी का लगा सकता है। साधक को आक के पुष्प या लाल रंग के पुष्प समर्पित करने चाहिए।
यह प्रयोग साधक किसी भी मंगलवार की रात्रि को करे तथा समय १० बजे के बाद का रहे। सर्व प्रथम साधक स्नान आदि से निवृत हो कर वस्त्र धारण कर के लाल आसान पर बैठ जाये। साधक अपने पास ही आक के १०० पुष्प रख ले। तत्पश्चात अपने सामने किसी बाजोट पर या पूजा स्थान में लाल वस्त्र बिछा कर उस पर हनुमानजी का चित्र या यन्त्र या विग्रह को स्थापित करे। उसके बाद दीपक जलाये।
साधक गुरु पूजन गुरु मंत्र का जाप कर हनुमानजी का सामान्य पूजन करे। इस क्रिया के बाद साधक ‘हं’ बीजमंत्र का उच्चारण कुछ देर करे।
इसके बाद साधक हाथ में जल ले कर संकल्प करे तथा अपनी मनोकामना बोले. इसके बाद साधक राम रक्षा स्तोत्र या ‘रां रामाय नमः’ का यथा संभव जाप करे। जाप के बाद साधक अपनी तीनों नाडी अर्थात इडा पिंगला तथा सुषुम्ना में श्री हनुमानजी को स्थापित मान कर उनका ध्यान करे. तथा हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दे। साधक को उसी रात्रि में १०० बार पाठ करना है. हर एक बार पाठ पूर्ण होने पर एक पुष्प हनुमानजी के यंत्र/चित्र/विग्रह को समर्पित करे. इस प्रकार १०० बार पाठ करने पर १०० पुष्प समर्पित करने चाहिए. १०० पाठ पुरे होने पर साधक वापस ‘हं’ बीज का थोड़ी देर उच्चारण करे तथा जाप को हनुमानजी के चरणों में समर्पित कर दे।
इस प्रकार यह प्रयोग पूर्ण होता है। साधक दूसरे दिन पुष्प का विसर्जन कर दे।
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