वेदमंत्र का संक्षिप्त रूप बीजमंत्र
वेदमंत्र का संक्षिप्त रूप बीजमंत्र कहलाता है । वेद वृक्ष का सार संक्षेप बीज है । मनुष्य का बीज वीर्य है । समूचा काम विस्तार बीज में सन्निहित रहता है ।
गायत्री के तीन चरण हैं । इन तीनों का एक-एक बीज (भूः, भुवः, स्वः) है । इस व्याहृति भाग का भी बीज है-ॐ । यह समग्र गायत्री मंत्र की बात हुई । प्रत्येक अक्षर का भी एक-एक बीज है । उसमें उस अक्षर की सार शक्ति विद्यमान है । तांत्रिक प्रयोजनों में बीजमंत्र का अत्यधिक महत्त्व है । इसलिए गायत्री एवं महामृत्युंजय जैसे प्रख्यात मंत्रों की भी एक या कई बीजों समेत उपासना की जाती है। चौबीस अक्षरों के २४ बीज इस प्रकार हैं-
(१)ॐ (२) ह्रीं (३) श्रीं (४) क्लीं (५) हों (६) जूं (७) यं (८) रं (९) लं (१०) वं (११) शं (१२) सं (१३) ऐं (१४) क्रों (१५) हुं (१६) ह्लीं(१७) पं (१८) फं (१९) टं (२०) ठं (२१) डं (२२) ढं (२३) क्षं (२४) लृं ।
यह बीज मंत्र व्याहृतियों के पश्चात् एवं मंत्र भाग से पूर्व लगाये जाते हैं । भूर्भुवः स्वः के पश्चात् 'तत्सवितुः' से पहले का स्थान ही बीज लगाने का स्थान है । प्रचोदयात् के पश्चात् भी इन्हें लगाया जाता है। ऐसी दशा में उसे सम्पुट कहा जाता है । बीज या सम्पुट में से किसे कहाँ लगाना चाहिए, इसका निर्णय किसी अनुभवी के परामर्श से करना चाहिए । बीज- विधान, तंत्र-विधान के अन्तर्गत आता है । इसलिए इनके प्रयोग में विशेष सतर्कता की आवश्यकता रहती है ।
२४ बीज मंत्रों से सम्बन्धित २४ यंत्र प्रत्येक बीज मंत्र का एक यंत्र भी है । इन्हें अक्षर यंत्र या बीज यंत्र कहते हैं । तांत्रिक उपासनाओं में पूजा प्रतीक में चित्र-प्रतीक की भाँति किसी धातु पर खोदे हुए यंत्र की भ्ाी प्रतिष्ठापना की जाती है और प्रतिमा पूजन की तरह यंत्र का भी पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन किया जाता है ।
दक्षिणमार्गी साधनों में प्रतिमा पूजन का जो स्थान है, वही वाममार्गी उपासना उपचार में यंत्र-स्थापना का है । गायत्री यंत्र विख्यात है । बीजाक्षरों से युक्त २४ यंत्र उसके अतिरिक्त हैं । इन्हें २४ अक्षरों में सन्निहित २४ शक्तियों की प्रतीक- प्रतिमा कहा जा सकता है ।
गायत्री के तीन चरण हैं । इन तीनों का एक-एक बीज (भूः, भुवः, स्वः) है । इस व्याहृति भाग का भी बीज है-ॐ । यह समग्र गायत्री मंत्र की बात हुई । प्रत्येक अक्षर का भी एक-एक बीज है । उसमें उस अक्षर की सार शक्ति विद्यमान है । तांत्रिक प्रयोजनों में बीजमंत्र का अत्यधिक महत्त्व है । इसलिए गायत्री एवं महामृत्युंजय जैसे प्रख्यात मंत्रों की भी एक या कई बीजों समेत उपासना की जाती है। चौबीस अक्षरों के २४ बीज इस प्रकार हैं-
(१)ॐ (२) ह्रीं (३) श्रीं (४) क्लीं (५) हों (६) जूं (७) यं (८) रं (९) लं (१०) वं (११) शं (१२) सं (१३) ऐं (१४) क्रों (१५) हुं (१६) ह्लीं(१७) पं (१८) फं (१९) टं (२०) ठं (२१) डं (२२) ढं (२३) क्षं (२४) लृं ।
यह बीज मंत्र व्याहृतियों के पश्चात् एवं मंत्र भाग से पूर्व लगाये जाते हैं । भूर्भुवः स्वः के पश्चात् 'तत्सवितुः' से पहले का स्थान ही बीज लगाने का स्थान है । प्रचोदयात् के पश्चात् भी इन्हें लगाया जाता है। ऐसी दशा में उसे सम्पुट कहा जाता है । बीज या सम्पुट में से किसे कहाँ लगाना चाहिए, इसका निर्णय किसी अनुभवी के परामर्श से करना चाहिए । बीज- विधान, तंत्र-विधान के अन्तर्गत आता है । इसलिए इनके प्रयोग में विशेष सतर्कता की आवश्यकता रहती है ।
२४ बीज मंत्रों से सम्बन्धित २४ यंत्र प्रत्येक बीज मंत्र का एक यंत्र भी है । इन्हें अक्षर यंत्र या बीज यंत्र कहते हैं । तांत्रिक उपासनाओं में पूजा प्रतीक में चित्र-प्रतीक की भाँति किसी धातु पर खोदे हुए यंत्र की भ्ाी प्रतिष्ठापना की जाती है और प्रतिमा पूजन की तरह यंत्र का भी पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन किया जाता है ।
दक्षिणमार्गी साधनों में प्रतिमा पूजन का जो स्थान है, वही वाममार्गी उपासना उपचार में यंत्र-स्थापना का है । गायत्री यंत्र विख्यात है । बीजाक्षरों से युक्त २४ यंत्र उसके अतिरिक्त हैं । इन्हें २४ अक्षरों में सन्निहित २४ शक्तियों की प्रतीक- प्रतिमा कहा जा सकता है ।
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