चमत्कारी 12 खंभों के पूजन से शनि संबंधित सभी कष्टों से निजात पाएं
हिमाचल प्रदेश के महाकाल गांव में स्थित शनिदेव का मंदिर है। जहां प्रत्येक राशि का एक खंभा है। मान्यता है कि जातक अपनी राशि अनुसार खंभे पर कच्चा धागा बांधकर जो भी फरियाद करता है शनिदेव उसे कभी निराश नहीं करते। कच्चा धागा बांधने से साढ़ेसाती हो या ढैय्या, अष्टम शनि का संकट हो या कंटक जीवन के सारे दुख इस स्थान पर आकर सुख में परिवर्तित हो जाते हैं।
जिस प्रकार सूर्य के इर्द-गिर्द ग्रह घूमते हैं उसी प्रकार महाकाल मंदिर के गोल-गोल खंभों के इर्द गिर्द घूमती है शनि भक्तों की दुनिया। ये खंभे कोई साधारण खंभे नहीं हैं बल्कि ये खंभे हर मुरादें पूरी करने वाले खंभे हैं। इन खंभों में भक्तों की अटूट आस्था एवं श्रद्धा है। ये सौभाग्यशाली चमत्कारी 12 खंभे भक्तों को शनिदेव का आशीर्वाद दिलाते हैं जिससे जीवन में आने वाले सभी दुखों का निवारण होता है। मान्यता है कि इस मंदिर में शनिदेव ने महाकाल को अपने तप से खुश कर उनसे बलशाली होने का वर पाया था।
जब शनि देव का जन्म हुआ तो शनि के श्यामवर्ण को देखकर भगवान सूर्य नारायण क्रोधित हो गए और शनिदेव को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया। छाया ने उन्हें बहुत प्रकार से समझाने का प्रयत्न किया मगर वह न माने और पुत्र सहित छाया का त्याग कर दिया। बड़े होने पर जब शनि ने अपनी मां से पिता के बारे में जानना चाहा तो छाया ने उसे सारा वृतांत सुनाया। शनि देव अपनी मां के मुख से पिता के विषय में जान कर कशमश में फंस गए तब हिमाचल प्रदेश के महाकाल मंदिर में आकर शनि देव ने शिव जी की उपासना की और अपनी तपस्या एवं आंसुओं से महाकाल को पिघला दिया। शिव जी के वरदान से शनि देव को नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त हुआ। मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं।
शिव और शनि के अटूट रिश्ते का यह मंदिर आधार है। भगवान शिव ने शनिदेव की मुराद पूरी की अब शनिदेव इसी स्थान पर अपने भक्तों की मूरादें पूरी करते हैं। यहां आने वाले भक्तों को पूर्ण आस्था है कि मंदिर में पूजा करने और शनिदेव पर सरसों का तेल अर्पित करने से सात हफ्तों में साढ़ेसाती से निजात मिलता है। यही नहीं ग्रहों की टेढ़ी चाल से भी मुक्ति मिलती है लेकिन जिस ग्रह की टेढ़ी चाल से छुटकारा पाना हो उस राशि के दिन आकर कच्चा धागा बांधना होता है, फिर शनि के साथ ग्रहों की बिगड़ी चाल का भी निवारण हो जाता है।
तभी से इस धाम में शिव और शनिदेव की साथ-साथ पूजा अर्चना की जाती है। कुछ समय पूर्व तक तो शनिदेव और भगवान शिव एक साथ विराजते थे लेकिन वर्तमान समय में उनके मंदिर पृथक-पृथक हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु सर्वप्रथम महाकाल के दर्शन करते हैं फिर शनिदेव के। मान्यता है की यहां आने वाले श्रद्धालु ग्रहण और किसी विशेष दिन यहां आकर विधि-विधान से पूजा करते हैं तो भक्तों की हर इच्छा को मिल जाता है महाकाल संग शनिदेव का भी आशीर्वाद।
जिस प्रकार सूर्य के इर्द-गिर्द ग्रह घूमते हैं उसी प्रकार महाकाल मंदिर के गोल-गोल खंभों के इर्द गिर्द घूमती है शनि भक्तों की दुनिया। ये खंभे कोई साधारण खंभे नहीं हैं बल्कि ये खंभे हर मुरादें पूरी करने वाले खंभे हैं। इन खंभों में भक्तों की अटूट आस्था एवं श्रद्धा है। ये सौभाग्यशाली चमत्कारी 12 खंभे भक्तों को शनिदेव का आशीर्वाद दिलाते हैं जिससे जीवन में आने वाले सभी दुखों का निवारण होता है। मान्यता है कि इस मंदिर में शनिदेव ने महाकाल को अपने तप से खुश कर उनसे बलशाली होने का वर पाया था।
जब शनि देव का जन्म हुआ तो शनि के श्यामवर्ण को देखकर भगवान सूर्य नारायण क्रोधित हो गए और शनिदेव को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया। छाया ने उन्हें बहुत प्रकार से समझाने का प्रयत्न किया मगर वह न माने और पुत्र सहित छाया का त्याग कर दिया। बड़े होने पर जब शनि ने अपनी मां से पिता के बारे में जानना चाहा तो छाया ने उसे सारा वृतांत सुनाया। शनि देव अपनी मां के मुख से पिता के विषय में जान कर कशमश में फंस गए तब हिमाचल प्रदेश के महाकाल मंदिर में आकर शनि देव ने शिव जी की उपासना की और अपनी तपस्या एवं आंसुओं से महाकाल को पिघला दिया। शिव जी के वरदान से शनि देव को नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त हुआ। मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं।
शिव और शनि के अटूट रिश्ते का यह मंदिर आधार है। भगवान शिव ने शनिदेव की मुराद पूरी की अब शनिदेव इसी स्थान पर अपने भक्तों की मूरादें पूरी करते हैं। यहां आने वाले भक्तों को पूर्ण आस्था है कि मंदिर में पूजा करने और शनिदेव पर सरसों का तेल अर्पित करने से सात हफ्तों में साढ़ेसाती से निजात मिलता है। यही नहीं ग्रहों की टेढ़ी चाल से भी मुक्ति मिलती है लेकिन जिस ग्रह की टेढ़ी चाल से छुटकारा पाना हो उस राशि के दिन आकर कच्चा धागा बांधना होता है, फिर शनि के साथ ग्रहों की बिगड़ी चाल का भी निवारण हो जाता है।
तभी से इस धाम में शिव और शनिदेव की साथ-साथ पूजा अर्चना की जाती है। कुछ समय पूर्व तक तो शनिदेव और भगवान शिव एक साथ विराजते थे लेकिन वर्तमान समय में उनके मंदिर पृथक-पृथक हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु सर्वप्रथम महाकाल के दर्शन करते हैं फिर शनिदेव के। मान्यता है की यहां आने वाले श्रद्धालु ग्रहण और किसी विशेष दिन यहां आकर विधि-विधान से पूजा करते हैं तो भक्तों की हर इच्छा को मिल जाता है महाकाल संग शनिदेव का भी आशीर्वाद।
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