संवत्सर के नाम , फल एवं स्वामी

भारतीय संस्कृति में चन्द्र वर्ष का प्रयोग किया जाता है| चन्द्र वर्ष को ही संवत्सर कहा जाता है |ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से किया था अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है|हिंदू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है|अग्नि ,नारद आदि पुराणों, विभिन्न ज्योतिष ग्रंथो में वर्णित साठ संवत्सरों के नाम तथा उनके विश्व में होने वाले शुभाशुभ फल निम्नलिखित प्रकार से हैं I ये फल वृहत संहिता ज्योतिष ग्रन्थ के अनुसार हैं I प्रथम 20 सम्वत (1 से 20 ) ब्रह्मविंशति अगले 20 सम्बत (21 से 40) विष्णुविंशति अगले 20 सम्बत (41 से 60)रूद्रविंशति होते हैI
संवत्सर का नाम वर्ष फल संवत्सर स्वामी
1. प्रभव प्रजा में यज्ञादि शुभ कार्यों कि भावना हो | विष्णु
2. विभव प्रजा में सुख समृद्धि हो | बृहस्पति
3. शुक्ल विश्व में धान्य प्रचुर मात्रा मेंहो | इंद्र
4. प्रमोद प्रजा में आमोद प्रमोद ,सुख वैभव कि वृद्धि हो | लोहित
5. प्रजापति विश्व में चतुर्विध उन्नति हो | त्वष्टा
6. अंगिरा भोग विलास कि वृद्धि हो | अहिर्बुध्न्य
7. श्री मुख जनसँख्या में अधिक वृद्धि हो | पितर
8. भाव प्राणियों में सद्भावना बढे | विश्वेदेव
9. युवा मेघों द्वारा प्रचुर वृष्टि हो | चन्द्र
10. धाता विश्व में समस्त औषधियों कि वृद्धि हो | इन्द्राग्नी
11. ईश्वर आरोग्य व क्षेम कि प्राप्ति हो | अश्वनी कुमार
12. बहुधान्य अन्न कि प्रचुरता हो | भग
13. प्रमाथी शुभाशुभ प्रकार का मध्यम वर्ष हो| विष्णु
14. विक्रम अन्न कि अधिकतारहे | बृहस्पति
15. वृषप्रजा जनों का पोषण हो | इंद्र
16. चित्रभानु विचित्र घटनाएं हों | लोहित
17. सुभानु आरोग्यकारक व कल्याणकारी वर्ष हो | त्वष्टा
18. तारण मेघों द्वारा शुभकारक वर्षा हो | अहिर्बुध्न्य
19. पार्थिव सस्य संपत्तिकि वृद्धि हो | पितर
20. अव्यय अतिवृष्टि हो | विश्वेदेव
21. सर्वजीत उत्तम वृष्टि का योग | चन्द्र
22. सर्वधारी धान्यों कि अधिकता | इन्द्राग्नी
23. विरोधी अनावृष्टि | अश्वनी कुमार
24. विकृति भय कारक घटनाएं | भग
25. खर पुरुषों में साहस व वीरता का संचार | विष्णु
26. नंदन प्रजा में आनंद| बृहस्पति
27. विजय दुष्टों का नाश| इंद्र
28. जय रोगों का शमन | लोहित
29. मन्मथ विश्व में ज्वर का प्रकोप | त्वष्टा
30. दुर्मुख मनुष्यों किवाणी में कटुता | अहिर्बुध्न्य
31. हेम्लम्बी सम्पदा कि वृद्धि| पितर
32. विलम्बी अन्न कि प्रचुरता | विश्वेदेव
33. विकारी दुष्ट व शत्रु कुपित हों | चन्द्र
34. शार्वरी कृषि में वृद्धि| इन्द्राग्नी
35. प्लव नदियों में बाढ़ का प्रकोप | अश्वनी कुमार
36. शुभकृत प्रजा में शुभता | भग
37. शोभकृत शुभ फलों कि वृद्धि| विष्णु
38. क्रोधी स्त्री –पुरुषों में वैर ,रोग वृद्धि| बृहस्पति
39. विश्वावसु अन्न महंगा,रोग व चोरों कि वृद्धि,राजा लोभी | इंद्र
40. पराभव रोग वृद्धि, प्रचुर वृष्टि,राजा का तिरस्कार ,तुच्छ धान्यों कि अधिकता | लोहित
41. प्ल्वंग कृषि हानि,प्रजा में रोग व चोरी,राजाओं का युद्ध | त्वष्टा
42. कीलक पित्त विकार,मध्यम वर्षा ,सर्प भय,प्रजा में कलह | अहिर्बुध्न्य
43. सौम्य राजा प्रसन्न,शीत प्रकृति के रोग, मध्यम वर्षा ,सर्प भय| पितर
44. साधारण राजा व प्रजा सुखी ,कृषि के लिए वर्षा उत्तम | विश्वेदेव
45. विरोधकृत राजाओं में वैर –भाव , मध्यम वर्षा,प्रजा में आनंद | चन्द्र
46. परिधावी अन्न महंगा , मध्यम वर्षा,प्रजा में रोग ,उपद्रव | इन्द्राग्नी
47. प्रमादी जनता में आलस्य व प्रमाद कि वृद्धि| अश्वनी कुमार
48. आनंद जनता में सुख व आनंद | भग
49. राक्षस प्रजा में निष्ठुरता कि वृद्धि| विष्णु
50. आनल विविध धान्यों किवृद्धि| बृहस्पति
51. पिंगल कहीं उत्तम व कहीं मध्यम वृष्टि | इंद्र
52. कालयुक्त धन –धन्य कि हानि | लोहित
53. सिद्धार्थी सम्पूर्ण कार्यों कि सिध्धि | त्वष्टा
54. रौद्र विश्व में रौद्र भाव कि अधिकता | अहिर्बुध्न्य
55. दुर्मति मध्यम वृष्टि | पितर
56. दुन्दुभी धन –धान्य कि वृद्धि| विश्वेदेव
57. रूधिरोद्गारी हिंसक घटनाओं से रक्तपात | चन्द्र
58. रक्ताक्षी रक्तपात से जनहानि | इन्द्राग्नी
59. क्रोधन शासकों को विजय प्राप्त | अश्वनी कुमार
60. क्षय प्रजा का धन क्षीण भग

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

सूर्य तप्त जल और उसके रंगों से चिकत्सा(क्रोमोथैरेपी )-

मंत्र

सर्व विपत्ति-हर्ता श्री घंटाकर्ण मंत्र व साधना - प्रयोग विधि