कुंडली का छठा भाव
लग्न- पंचम-नवम भाव का त्रिकोण महत्वपूर्ण त्रिकोण होता है। दूसरा भाव ,प्राप्त होने का भाव है। किसी भी भाव को यदि बीज -जड़ या मूल मान लिया जाय तो समझिए अगला भाव, इस बीज का फल है, इसकी उपज है ,इससे प्राप्त हासिल है. नवम का फल कर्म है ,लग्न का फल धन भाव है। धन भाव अर्थात आपके पैदा होते ही आपको सहज प्राप्त वसीयत ,आपको स्वतः प्राप्त सुविधा। इसी प्रकार पंचम भाव जो की शिक्षा, संतान या सीधे कहूँ उत्पादन का भाव है ,इसका ही फल षष्टम भाव है.जातक के जन्म लेते ही उसके लिए शत्रु का रोल निभाने वाला भाव। ये शत्रु भाव है ,किसका शत्रु भला ?कुंडली का ,जातक का। उसकी हैसियत का ,उसकी पर्सनैलिटी का। अपने प्राप्त ज्ञान से,अपने उत्पादन से (पंचम से ) आगे के जीवन के लिए जो उत्पादित होना था ,जो लाभ नवम के रूप में लग्न को प्राप्त होना था, उसके लिए लिए विनाश का कारण बन जाता है छठा भाव। लग्न को यह आठवीं दृष्टि से देखता है ,उसे बर्बाद करने वाली स्थितियां उत्पन्न करता है। शायद उलझ रहे हैं आप .... चलिए सामान्य भाषा में कहता हूँ। अपनी सोच ,अपने प्राप्त ज्ञान को (पंचम ) जातक अपने भाग्य को बदलने ,या कहें काम करने का अवसर ...