राहु भाव

राहु एक छाया ग्रह है, परंतु जन्म पत्रिका में यह जिस भाव स्थित होता है, उस स्थान को बेहद प्रभावित करता है। खासकर जब राहु की महादशा हो। जातक पूर्णत: असमंजस की स्थिती में आ जाता है। वह अच्छे-बुरे का विचार भी छोड देता है। जातक की रूचि विपरित कार्यों में हो जाती है
१. प्रथम भाव- विजयी, कृपण, वैरागी, गुस्सैल, कमजोर मस्तिष्क।
२. द्वितिय भाव- द्वैष रखने वाला, झूठा, कड़वा बोलने वाला, मक्कार, धनवान।
३. तृतीय भाव- ताकतवर, अक्लमंद, उद्यमी, विवेकशील।
४. चतुर्थ भाव- मातृद्रोही, सुखहीन, झगडऩे वाला।
५. पंचम भाव- पुत्रवाला, सुखी, धनवान, कम अक्ल का।
६. षष्ठ भाव- ताकतवर, धैर्यशली, शत्रुविजयी, कर्मठ।
७. सप्तम भाव- अनेक विवाह, कपटी, व्यभिचारी, चतूर।
८. आठवां भाव- लम्बी आयु परंतु क ष्टकारी जीवन, गुप्त रोगी।
९. नवां भाव- भाग्यहीन, यात्रा करने वाला, मेहनती।
१0. दसवा भाव- नीच कर्म करने वाला, नशाखोर, वाचाल।
११. एकादश भाव- चोकस, छोटे कार्य करनेे वाला, लालची।
१२. द्वादश भाव- पैसा लुटानेवाला, जल्दबाज, चिंता।
ये एक आम जानकारी है।ग्रह,नक्षत्र,लग्न, दृष्टि,भाव स्वामी,डिग्री सब जरूरी है सटीक फलित के लिए।

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