प्रात: स्मरणम

ब्रम्हा मुरारी स्त्रिपुरंतकारी भानू: शशि भूमिसुतो बुधश्च
गुरुश्च शुक्र: शनि राहू केतव: कुर्वन्तु सर्व मम सुप्रभातम।

(ब्रम्हा, मुरारी ( विष्णु ), त्रिपुरासुर नाशक शिव, सूर्य, चंद्र, भूमिसुत मंगल, बुध, ब्रहस्पति, शुक्र, शनि, राहू और केतु ये सब नवग्रह मेरे लिए सुप्रभात करे। )

कराग्रे वास्ते लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले तू गोविन्द: प्रभाते कर दर्शनम।।

( करतल ( हथेली ) के अग्रभाग में लक्ष्मी का, मध्य भाग में सरस्वती का और मूल भाग में गोविन्द का निवास है। अत: प्रात:काल उठकर पुरषार्थ का प्रतीक करतल का दर्शन करना चाहिए। )

Comments

Popular posts from this blog

सूर्य तप्त जल और उसके रंगों से चिकत्सा(क्रोमोथैरेपी )-

मंत्र

सर्व विपत्ति-हर्ता श्री घंटाकर्ण मंत्र व साधना - प्रयोग विधि