फलित ज्योतिष के कुछ महत्तवपूर्ण सूत्र

फलित ज्योतिष के कुछ महत्तवपूर्ण सूत्र
दशा अन्तरदशा एवं अस्टक वर्ग का फलित से राजयोगो अथवा दुर्योगो का विवेचन••
•• किसी भी ग्रह की दशा में उस ग्रह की दिशा में जाने से लाभ होता है । हालाकि ये ग्रह की प्रकृति पर भी निर्भर करेगा । जैसे - अगर शुक्र की दशा चल रही हो तो - शुक्र की उत्तर दिशा की ओर जाने से लाभ होगा । लेकिन शुक्र की प्रकृति अनुसार राजसिकता से धन भी व्यय होगा और स्वास्थ लाभ भी होगा ।
जैसे - गुरु की दशा हो तो पठन-पाठन और ज्ञान के लिये व्यक्ति पूर्व दिशा की ओर जायेगा ।
जैसे शनि की दशा हो तो व्यक्ति काम-धंदे की तलाश में पश्चिम दिशा की ओर जायेगा ।
•• ज्योतिषाचार्य पं.मणिकान्त पान्डेय के अनुसार कुंडली में मंगल और गुरु, नवांश में पुरुष राशि में हो और 'हंस-योग' हो तो बुद्धिमान पुरुष का जन्म होता है ।
सप्तमांश लग्न में पुरुष-राशि का गुरु हो तो उसकी दशा में बुद्धिमान पुरुष का जन्म होता है ।
सिंह लग्न हो और बलवान गुरु, नवांश में पुरुष-राशि का हो, पाप रहित पंचम भाव पर गुरु की दृष्टी हो तो गुरु की दशा में बुद्धिमान पुरुष का जन्म होता है ।
गुरु के अष्टक-वर्ग में जिस राशि में सबसे ज्यादा बिंदु हो, उस राशि के लग्न में गर्भाधान करने से बुद्धिमान पुरुष का जन्म होता है ।
•• कुंडली में किसी भी ग्रह का उच्च होना बहुत शुभ माना जाता है । परंतु ग्रह जिस राशि में उच्च का है उस राशि का स्वामी भी फिर उच्च का हो जाये तो - ये स्थिति दोनों ही ग्रहों को 'परम-उच्च' स्थिति में ला देगी । जैसे - शुक, मीन राशि में उच्च का हो और मीन राशि का स्वामी गुरु फिर कर्क राशि में उच्च का हो जाये तो - दोनों ही ग्रह 'परम-उच्च' हो जायेंगे ।
अब दोनों ही ग्रहों में से एक अवश्य ही - धन-भाव, केंद्र अथवा त्रिकोण का स्वामी होगा और उसकी दशा में व्यक्ति करोड़पति बन जायेगा ।
•• दो वक्री ग्रहों की दशा-भुक्ति चल रही हो तो - दोनों उस चीज को वापस ले आते है - जिस चीज के वे दोनों कारक होंगे । फिर वो ज़मीन-जायदाद हो, प्रेमी-प्रेमिका हो याँ पहले वाली बीमारी । जैसे - वक्री सप्तमेश की दशा हो और उसमे वक्री शुक्र की भुक्ति चले तो - बिछड़े प्रेमी-प्रेमिका फिर मिल जाते हैं ।
•• किसी स्त्री की अगर वृश्चिक राशि हो तो उसकी आवाज में विशेष प्रभाव आ जाता है । मानो कोई निर्मल और स्पष्ट झरना बह रहा हो ।
रहस्य और राजदारी की राशि होने के कारण, वो चाहे ना चाहे उसके आसपास रहस्य और राजदारी का माहौल बन ही जाता है।
•• सर्वाष्टक-वर्ग के अनुसार 337 रेखाओं में से जिस राशि में 35 से ज्यादा रेखायें हो - कालपुरुष के अनुसार - वो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती है । शरीर का वह अंग पुष्ट होता है । अगर रेखायें 18 से कम हो तो शरीर का वह अंग अपुष्ट होता । इसमें किसी ग्रह की युति और दृष्टी का प्रभाव उल्लेखनीय है ।
•• दो ऐसे व्यक्ति जिनकी एक-दूसरे से विपरीत दशायें चल रही हो । जैसे - गुरु और शुक्र, जैसे - मंगल और बुध जैसे - सूर्य और शनि ।
तो उनकी विचारधारा भी एक-दूसरे से विपरीत हो जाती है । वे आपस में प्रतिद्वंदियों जैसा व्यवहार करने लगते हैं ।
•• राहु का प्रभाव ज्यादा हो जाये तो व्यक्ति को कुत्ते के काटने की संभावना रहती है । संभवत राहु के प्रभाव को कम करने के लिये कुत्ते के रूप में केतु सक्रीय हो जाता है ।
•• कई बार भ्रम और गलत-फेहमियां फ़ैल जाती है कि - जादू-टोना हुआ है, ऊपर की हवा है, काला जादू है और मारवाड़ी लोग कहते कि - लाग लगी है । इत्यादि-इत्यादि ।
•• चंद्र - शुक्र और अष्टमेश - अनिष्ट भावों में हो तो - जातक विषम भोजन के कारण अथवा उपवास के कारण उन्मांदि हो जाता है ।
लोग समझते हैं कि - कुछ जादू-टोना हो गया है, नहीं तो कहते हैं कि - आंग में माता आ गई है ।
•• चंद्र - शुक्र और अष्टमेश -- गुलिक याँ राहु-केतु के साथ हो तो - अपवित्र भोजन से जातक उन्मांदि हो जाता है । लोग समझते हैं कि - किसी ने कुछ कर दिया ।
•• पंचम में निर्बल शनि व्यक्ति को पद-प्रतिष्ठा के लिये लालायित रखता है और कलहप्रिय भी, पद-प्रतिष्ठा की खातिर ऐसा व्यक्ति वाद-विवाद करने पर उतारू रहता है ।
शनि एक रहस्य-कारक ग्रह है और जब ऐसे निर्बल शनि की दशा-अन्तर्दशा चलती है तब व्यक्ति के सारे रहस्य उजागर हो जाते हैं ।
एक कथा के अनुसार शनि कर्म-कारक और कृष्ण भक्त ग्रह है । कर्मयोग का फल प्रदान करने के कारण ये व्यक्ति के रहस्यों को ज्यादा कायम नहीं रख पाता है ।
शनि से ज्यादा रहस्यों को कायम रखने वाले गृह है बुध, गुरु और पंचम भाव का स्वामी ।
जब भी ये लग्न, लग्नेश, चंद्र और चंद्रेश से सम्बन्ध बनाते है तब इनके कारक तत्वों से सम्बंधित रहस्यों का ताना-बाना व्यक्ति बुनता है ।
लेकिन इनका बलवान होना आवश्यक है अन्यथा रहस्य खुलने में देरी नहीं लगती ।

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