नवम भाव भाग्य भाव

मित्रों  ज्योतिष  की  लगभग  सभी  विधियों में नवम  भाव  को  भाग्य  भाव की  संज्ञा  दी  गई  | ये  भाव  हमारे  भाग्य  की बुनियाद  यानी की  नीव  होता  है  | हमारा  भाग्य  कैसा  है  भाग्य  का  जीवन  में कितना  साथ  मिलेगा  आदि   सभी  इसी  भाव  के  द्वारा  देखें  जाते है  |
नवम भाव  धर्म कर्म दान पुण्य  का  भाव भी  कहलाता  है  | धर्म के प्रति हमारी  कितनी  आस्था है  दान  पुण्य  हम कितना करते है  धार्मिक  यात्रा  हम कितनी  कर सकते  है  इन सभी  बातों a अनुमान  भी इसी  भाव  से  लगाया जता  है  | हमारे  बड़े  बुज्रुगों  को भी ये  भाव  दर्शाता  है  और उनसे  हमे  मिलने  वाले  लाभ  को  भी येभाव  इंगित  करता  है  |
मानसिक  रूप  से  ये  हमारी  जागृत  अवस्था  का कारक  है  ,  हम  अंदर  से कितने  रूहानी  हो  सकते  है  ,  कितने  आध्यात्मिक  परवर्ती के इंसान हम  हो सकते है , अधाय्तं  के छेत्र में हम किस  हद  तक जा  सकते  है  और उसमे  हमे  कितनी  सफलता  मिलेगी   उसे  ये   ही  भाव  दर्शाता  है  | हमारी  दूसरों के उपर  परोपकार  करने  की परवर्ती भी  इसी  भाव  पर  निर्भर  करती  है \
घर  में  हमारे  ये  उस  भाग  को  दर्शता  है  जिस  जगह  बैठकर  हम पूजा  पाठ करते है | मकान  के सम्बन्ध  में ये  हमारे  बड़े  बुजुर्गो  के मकान  के बारे में हमे  जानकारी  देता  है  \
पेड़ पोधो  के सम्बन्ध में ऐसे  पोधे  जिनके  फल उनकी  जड़  में लगते  है उसे  ये  भाव  दर्शाता  है  तो  पंछियों में ऐसे जो  पानी  के  उपर  तैरते  है |
अधिकतर  ज्योतिष  ग्रंथो में इस  भाव  का  सम्बन्ध  हमारे  पिता  के  सतह  जोड़ा  गया  है  पिता  की  हालत  कैसी  होगी  उनका  आर्थिक  सिथ्ती  कैसी  होगी  आदि का अनुमान  इसी  भाव  से  लगाया  जाता है |  ये  भाव  हमारे  जीवन  की  व्य्यस्ता  और  संघर्ष  को  भी दर्शाता  है  जिसका कारण  ये है  की ये भाव हमारे  कर्म  भाव  का  व्यय  भाव  है  हम अपने  कर्मो  को किस  प्रकार  खर्च  करेंगे ] हमारे  कार्य  व्यर्थ जायेंगे  या  हम हमारा  कार्य  ज्यादा  व्यर्थ  की  चीजों  में खर्च  करेंगे  उन  सभी  पर  इस भाव  का  मुख्य  रूप  से प्रभाव  पड़ता  है  |
पंचम  भाव से  पंचम होने  के कारण  ये  हमारी  पोत्र यानी  की  पुत्र  के  पुत्र  का भाव  भी  बन  जाता  है  तो साथ  ही  ये  हमारी तीसरी सन्तान  को  दर्शाने  वाला  भाव  भी  है  |
सप्तम  भाव  से  तीसरा  भाव  होने  के कारण  जीवनसाथी  के  साहस  और शोर्य को  ये भाव  दर्शाता है  तो माता  के भाव से  छटा  होने के कारण  माता  की  बीमारी  को  भी ये भाव  इंगित  करता  है  \
मित्रों  ये  भाव  कुंडली के त्रिकोण भाव  में आता  है  और मह्रिषी  पराशर जी  ने कुंडली  में इस  भाव को  सबसे  ज्यादा महत्व  दिया  है  | त्रिकोनेश में इस  भाव  के  मालिक  का महत्व  अन्य  त्रिकोनेश  से  कुछ  न  कुछ  ज्यादा  ही  होता  है  तुलनात्मक  रूप  से  |  ये  ही  करान  है  की  इस भाव  का  मालिक  जब  दशमेश  साथ  सम्बन्ध  बनता  है  तो  उसे  सबसे  बड़े  राजयोग  की  श्रेणी  में गिना  गया  है  \
इस  प्रकार आप इस  भावके महत्व  को  आसानी  से जान  सकते  है |
जय  श्री राम

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