कुंडली में दुसरा भाव

मित्रों ज्योतिष  में दुसरे भाव  को एक महत्वपूर्ण  स्थान  दिया गया  है  |  ये  सबसे  मुख्य  बात की हमारे  कुटुंब  परिवार  को  दर्शाता   है ,हमारे  द्वारा  किये  जाने  वाले  संचित  धन  और  परिवार  से मिलने  वाले  धन  को ये  भाव  दर्शाता है इसिलिय  सोने  चांदी  का  सम्बन्ध इसी भाव  से  मना  गया  है  | हमारे शरीर में ये  दाई आँख  चेहरे  और  गले  को  दर्शाता  है  |  इस  भाव  को  वाणी  भाव  भी कहा  जाता  है  इसिलिय  हमारी  वाणी  मीठी होगी  या नही  और  गायन  छेत्र  में हमे  कैसी  सफलता  मिल  सकती  है  वो  इसी  भाव  पर  निर्भर  करता  है   \  हमारी  वाणी  का प्रभावशाली  होना  भी  इसी   भाव  पर  निर्भर  करेगा  \  हमारे द्वारा  सही  और  उचित  तरीके  से  कमाए  हुवे  धन  को  ये  ही  भाव  दर्शाता  है  |.एक  बात  खास  है  की पहले  भाव  से  हमारे  शरीर  को दर्शाया  जाता है  लेकिन  आपको  पता  है की  बिना  भोजन के शरीर नही  चल सकता  इसिलिय  खाद्य  पदार्थ  को  इस  भाव  द्वारा  दर्शाया जाता  है
मित्रों  दुसरे  भाव  का  कारक  ग्रह  गुरु  है  इसिलिय  हमारे  अंदर  आध्यात्मिकता  की  भावना  कितनी  होगी  , उसका  हमे  कितना  ज्ञान  होगा  उसका  अनुमान  भी  इसी  भाव  द्वारा  लगाया जाता है  \हमारे  जीवन  के  पहले  पढ़ाव  यानी की  उम्र  के 25 वें  साल  तक  हम  कितना  ज्ञान  अर्जित  करते  है  उसका  अनुमान  इसी  भाव  से  लगाया  जाता  है  \  इसी लिय  आरम्भिक  शिक्षा  के लिय  इसी  भाव  का  अध्ययन  आवश्यक  हो  जाता  है  \चूँकि  शुक्र  की  विर्ष  राशि  यहाँ  काल  पुरुष  की कुंडली  में आती  है  इसिलिय  हम अपने  धन का  कितना  ऐश  आराम  के लिय  प्रयोग  कर  सकते  है  उसका  भी  पता  इस  भाव  से  चल  जाता  है  \ ऐसा  पोधा जिसकी  कलम  काटकर  उसे  लगाया जता  है  उसका  भी  काराक  ये  ही  भाव  है  जैसे  की  मनीप्लांट  का  पोधा \
हमारे अंदर  दूसरों  से  अपना  काम  निकलवा लेने  की  जो  कला  होती  है  उसका  भी  ये  ही  भाव  कारक  होता  है |
दुसरे  भाव  को  धर्म  स्थान  की  संज्ञा  लाल  किताब  में  दी  गई  है लेकिन  घर  के अंदर  पुराने  समय में जहां  घर  में लोग  गाय  को  बांधते  थे  वो  इसी  भाव  को इंगित  करता  है  | दिशा  में इस  भाव  को  उतर  पश्चिम  दिशा  दी  गई  है  इसिलिय  इस  भाव  में यदि  कोई  ग्रह  शुभ  फल  दे  रहा है  तो  हम  उसकी  वस्तु  को  इस  दिशा में  घर  में कायम कर सकते  है  उसके  ज्यादा  शुभ  लेने  के लिए\ साथ  ही  इसे  ससुराल  का  भाव  भी माना  गया  है  ससुराल  से  आपको  कितना  धन लाभ या  अन्य  कोई  लाभ  मिलेगा  उसका  पता  इसी  भाव  से  चलता  है \
मित्रों प्राचीन ज्योतिष में इसे  मारक  भाव  की  श्रेणी   में रखा  गया  है  इसिलिय  इस भाव  का  मालिक  कुंडली  में मारक  ग्रह  माना  जाता  है  \
भाव  भावात  के  सिद्धांत  के हिसाब  से  यदि  हम  देखें  तो ये भाव  चोथे  भाव  से  ग्यारवाँ  भाव  है यानी  की  हमे अपनी  माता जन्म भूमि  आदि कितना  लाभ  मिलेगा साथ  ही   हमारी माता  जी की   कितनी  इच्छाओं  की  पूर्ति  होगी  उसे  ये  ही  भाव  दर्शाता  है  | ये  भाव  पंचम  से दसम  होने से सन्तान का  कर्म भाव  बन  जाता  है  तो  सप्तम  से  अस्ठ्म  होने  के कारण जीवन  साथी की  आयु  का  भाव \ लेकिन  भाग्य  से  भाव  से  ये  छटा  भाव  होने  के कारण  हमारे  भाग्य  का शत्रु  भाव  भी  हो  जाता  है तो  पिता  के  लिय  ये  रोग  का  भाव  बन जता  है | इसी  प्रकार  आप  अन्य  सभी  भावों  के द्वारा  इसका  अनुमान  लगा  सकते  है  \
जय  श्री  राम

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