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Showing posts from July, 2017

रोजमर्रा की आदतें से सुधारे अपने गृह : Modify your planets from everyday habits:

रोजमर्रा की आदतें से सुधारे अपने गृह : Modify your planets from everyday habits: * अगर आपको कही पर भी थूकने की आदत है , यह तो निश्चित है की आपको यश , सम्मान अगर मुश्किल से मिल भी जाता है तो कभी टिकेगा नहीं चाहे कुछ भी कर ले , इससे बचने के लिए wash basin में ही यह काम कर आया करे । * जिन लोगो को अपनी झूठी थाली या बर्तन वही उसी जगह पर छोड़ने की आदत होती है उनको सफलता कभी भी स्थायी रूप से नहीं मिलती , बहुत मेहनत करनी पड़ती है , और ऐसे लोग अच्छा नाम नहीं कमा पाते , और इनके आस पास काम करने वाले लोग इनसे जितना हो सकता है बचते है इनसे बात करने में । अगर आप अपने झूठे बर्तन को उठाकर उनकी सही जगह पर रख आते है या खुद ही साफ़ कर लेते है तो चन्द्रमा , शनि का आप सम्मान करते है । * जब भी हमारे घर पर कोई भी बहार से आये , चाहे मेहमान हो या कोई काम करने वाला , उसे स्वच्छ पानी जरुर पिलाए , ऐसा करने से हम राहू गृह का सम्मान करते है , जो लोग बहार से आने वाले लोगो तो स्वच्छ पानी हमेशा पिलाते है उनके घर में कभी भी राहू का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता । * घर के पौधे आपके अपने परिवार के सदस्य जैसे ही होते है , उ...

हिन्दू शास्त्र में ईश्वर पूजा के विधान -----

हिन्दू शास्त्र में ईश्वर पूजा के विधान ----- ______________________________________________ हमारे हिन्दू शास्त्र में ईश्वर पूजा के कुछ खास विधान दिए गए हैं. पथ पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पथ का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं.वे नियम कुछ इस प्रकार हैं. 1 सूर्य, गणेश,दुर्गा,शिव एवं विष्णु ये पांच देव कहलाते हैं. इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए. इससे धन,लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है. 2 गणेश जी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए. 3 दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए. 4 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए. 5 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोडना चाहिए. जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं,उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं. 6 रविवार,एकादशी,द्वादशी ,संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए 7 दूर्वा( एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए. 8 केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए. ९ कमल का फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं. 10 बिल्व पत्र ...

दैनिक बाधाओं का निवारण :

दैनिक बाधाओं का निवारण : 1. शुद्ध रुद्राक्ष माला धारण करने से भूतादि की बाधा, अभिचार कर्म तथा अन्य दुष्प्रभावों से रक्षा होती है। वन, पर्वत, श्मशान, युद्ध भूमि, अपरिचित स्थान, संकटग्रस्त स्थान में आपका तन-मन सुरक्षित रहता है। 2. रुद्राक्ष को चंदन की भांति जल में घिसकर, इसका लेप शरीर में लगाने से भौतिक व्याधियों से शरीर की रक्षा होती है। 3. चंदन की भांति माथे पर लेप या तिलक करने से शिवकृपा मिलती है, लोगों पर सम्मोहन जैसा प्रभाव पड़ता है। माथे पर लगा लेप सिर की पीड़ा को दूर करता है। 4. उदर विकार : पांच रुद्राक्ष (पांच मुखी भी) एक गिलास जल में डालकर सांय को ढककर रख दें। वह जल खाली पेट पियें, पुनः गिलास को भरकर रख दें, दूसरे दिन प्रातः वह जल पियें वह गिलास या पात्र तांबे का ही होना चाहिए। यह क्रम प्रतिदिन चलता रहे। इस जल के सेवन से सुस्ती, अनिद्रा, आलस्य, गैस, कब्ज और पेट के सभी विकार दूर हो जाते हैं। 5. रक्त चाप : पांच रुद्राक्ष - (पंचमुखी हों,) उसके दाने या पूरी माला शरीर को स्पर्श करती हुई पहनें। इससे रक्त चाप (ब्लड-प्रेशर) नियंत्रित रहता है। उपर्युक्त जल पीने से भी लाभ होता है। ...

मंत्र

🙏🏽या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।         ॐ ऐं: हीं:क्लीं: चामुण्डायै विच्चे श्री शिवनाथजीमहाराज की जय ॐ श्री पितर पिताराणी  नम ॐ श्री शाकम्भरी देव्यै नमः ॐ श्री श्याम देवाय नमः ॐ श्री राणी सत्यै नमः ॐ श्री हनुमन्ते नमः                                         *रोगनाशक देवी मन्त्र.......* अलख निरंजन🙏🏻, प्रिय दोस्तो यदी किसी भाइ को असाध्य रोग रोग हो गया है डाँक्टर से बार बार दवाइ लेने पर भी कोई फरक आप जी को नही महसूस हो रहा है तो विभिन्न रोगो के मंत्र मै आप लोगो को दे रहा हू,इनका जाप कर चमत्कार अपने आँखो देखिय....... मंत्र 1.“ॐ उं उमा-देवीभ्यां नमः” ‘Om um uma-devibhyaM namah’ इस मन्त्र से मस्तक-शूल (headache) तथा मज्जा-तन्तुओं (Nerve Fibres) की समस्त विकृतियाँ दूर होती है – ‘पागल-पन’(Insanity, Frenzy, Psychosis, Derangement, Dementia, Eccentricity)तथा ‘हिस्टीरिया’ (hysteria) पर भी इसका प्रभाव पड़ता...

हर ग्रह की शांति करता है : नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र (अर्थ सहित)

हर ग्रह की शांति करता है : नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र (अर्थ सहित) ग्रहों से होने वाली पीड़ा का निवारण करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत लाभदायक है। इसमें सूर्य से लेकर हर ग्रहों से क्रमश: एक-एक श्लोक के द्वारा पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की गई है- ग्रहाणामादिरात्यो लोकरक्षणकारक:। विषमस्थानसम्भूतां पीड़ां हरतु मे रवि: ।।1।। रोहिणीश: सुधा‍मूर्ति: सुधागात्र: सुधाशन:। विषमस्थानसम्भूतां पीड़ां हरतु मे विधु: ।।2।। भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा।  वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीड़ां हरतु में कुज: ।।3।। उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:।  सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीड़ां हरतु मे बुध: ।।4।। देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत:। अनेकशिष्यसम्पूर्ण:पीड़ां हरतु मे गुरु: ।।5।। दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामति:।  प्रभु: ताराग्रहाणां च पीड़ां हरतु मे भृगु: ।।6।। सूर्यपुत्रो दीर्घदेहा विशालाक्ष: शिवप्रिय:।  मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु मे शनि: ।।7।। अनेकरूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक्।  उत्पातरूपो जगतां पीडां पीड़ां मे तम: ।।8।। महाशिरा महावक्त्रो दी...

गायत्री साधना की सरल विधि

गायत्री साधना की सरल विधि 🌹 🌹 🌷 🌹 🌹 🌷 🌹 🌹 🌷 🌹 🌹 गायत्री उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है। हर स्थिति में यह लाभदायी है, परन्तु विधिपूर्वक भावना से जुड़े न्यूनतम कर्मकाण्डों के साथ की गयी उपासना अति फलदायी मानी गयी है। तीन माला गायत्री मंत्र का जप आवश्यक माना गया है। शौच-स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान, नियत समय पर, सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहिए।उपासना का विधि-विधान इस प्रकार है- सबसे पहले शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिए पाँच कृत्य करने होते हैं। पवित्रीकरण👉 बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मंत्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें। मन्त्र 👇 ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु। आचमन👉 वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें। हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाए। ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा। ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा। ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा। शिखा वंदन👉 श...

आमदनी के स्थाई स्त्रोत प्राप्ति का सरल और प्रभावशाली उपाय

आमदनी के स्थाई स्त्रोत प्राप्ति का सरल और प्रभावशाली उपाय वे लोग जो अपने व्यापार व नौकरी को लेकर हमेशा तनाव में रहते हैं। बार-बार अपना कारोबार बदलते है व बार-बार नौकरी बदलते है तथा कहीं पर भी स्थिर नहीं रह पाते हैं। उन्हें यह प्रयोग जरूर अजमाना चाहिए। 17 इंच लंबा काला रेशमी धागा ले उसे लाल चंदन, कुंकम व केसर को घोलकर उसे रंग लें। तत्पश्चात ‘ॐ हं पवननंदनाय स्वाहा’ मंत्र का जाप करते हुए आठ गांठ लगा दें। प्रत्येक गांठ पर एक सौ आठ पर इस मंत्र का जाप करें। तत्पश्चात इस अभिमंत्रित धागे को अपने कारोबार के मुख्य द्वार पर बांध दे। नौकरी से संबंधित लोगों को अपनी चेयर या मेज की दराज में रख ले या कुर्सी पर यह धागा बांध लें। कारोबार व नौकरी में अवश्य स्थिरता आ जायेगी। ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ मान सम्मान प्राप्ति के कुछ उपाय 🌻 👉 मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किए जाने वाली पूजा,उपाय / टोटकों के लिए पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ होता है। 👉 गुरु ग्रह को सौभाग्य, सम्मान और समृद्धि नियत करने वाला माना गया है।शास्त्रों में यश व सफलता के इच्छुक हर इं...

जानिये क्या संकेत देता है तुलसी का मुरझाया पौधा?

जानिये क्या संकेत देता है तुलसी का मुरझाया पौधा? 🌿🌿 🍃 🌿🌿 🍃 🌿🌿 🍃 🌿🌿 🍃 🌿🌿 🍃 🌿🌿 👉 प्रकृति की खासियत प्रकृति की अपनी एक अलग खासियत है। इसने अपनी हर एक रचना को बड़ी ही खूबी और विशिष्ट नेमत बख्शी है। इंसान तो वैसे भी प्रकृति की उम्दा रचनाओं में से एक है जो समझदारी और सूझबूझ से काम लेता है। इसके अलावा जानवरों की खूबी ये है कि वे आने वाले खतरे, मसलन भूकंप, सुनामी, पारलौकिक ताकतों आदि को पहले ही भांप सकने में सक्षम होते हैं। लेकिन बहुत ही कम लोग यह बात जानते हैं कि पौधों के भीतर भी ऐसी ही अलग विशेषता है, जिसे अगर समझ लिया जाए तो घर के सदस्यों पर आने वाले कष्टों को पहले ही टाला जा सकता है। 👉 क्यों मुरझाता है तुलसी का पौधा शायद कभी किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि चाहे तुलसी के पौधे पर कितना ही पानी क्यों ना डाला जाए, उसकी कितनी ही देखभाल क्यों ना की जाए, वह अचानक मुरझाने या सूखने क्यों लगता है? 👉 क्या बताना चाहता है आपको यकीन नहीं होगा लेकिन तुलसी का मुरझाया हुआ पौधा आपको यह बताने की कोशिश कर रहा होता है कि जल्द ही परिवार पर किसी विपत्ति का साया मंडरा सकता है। कहने...

भोजन करने का रहश्य

भोजन करने का रहश्य भोजन करते बक्त बातचीत क्यो नहीं चाहिएnतथा टीवी क्यो नहीं देखना चाहिएnतथा खड़े होकर भोजन क्यो नहीं करना चाहिए ? क्या है इसका वायो वैज्ञानिक रहश्य ? जाने । भोजन हमेशा हमे एकाग्रचित होकर ही करना चाहिए तथा ध्यानपूर्वक करना चाहिए और भोजन करते समय हमे बातचीत बिलकुल नहीं करनी चाहिए । इसके पीछे हमारे शरीर मे एक रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान की क्रिया काम करती है । जिसके बारे मे हमे मालूम ही नहीं होता है । हमारे शरीर की 5 इंद्रियाँ मन से संचालित होती है । मन जिस इंद्री पर ध्यान लगाता है तो वही इंद्री क्रियाशील हो जाती है । भोजन करते समय हमारे शरीर की स्वाद इंद्री और उदान प्राण क्रियाशील रहता है । स्वाद इंद्री भोजन को पचाने के लिए लार छोड़ती है । अगर आपका ध्यान पूर्ण रूप से भोजन पर है तो आपकी स्वाद इंद्री लार का विसर्जन समुचित मात्रा मे करेगी । जिसके कारण आपका भोजन तुरंत पच जाएगा और पच कर तुरंत समान प्राण को आपूर्ति करेगा । जिसके कारण आपके शरीर की ऊर्जा तुरंत ही बढ़ जाएगी । और तुरंत आपको डकार आनी शुरू जाएगी कि आपका भोजन पच गया है। अगर आप भोजन करते समय बातचीत करने मे मस्त है ...

गृह मंदिर में पूजा का विधान

गृह मंदिर में पूजा का विधान ……. * देवालय मंदिर या गुंबद के आकार का न बनाकर ऊपर से चपटा बनवाएँ। * देवालय जहाँ तक हो सके ईशान कोण में रखें। यदि ईशान न मिले तो पूर्व या पश्चिम में स्थापित करें। * देवालय में कुल देवता, देवी, अन्नपूर्णा, गणपति, श्रीयंत्र आदि की स्थापना करें। * तीर्थ स्थानों से खरीदी मूर्तियों को देवालय में न रखें। पारंपरिक मूर्तियों की ही पूजा करें। * आसन बिछाकर मूर्तियाँ रखें। पूजा करते समय आप भी आसन पर बैठकर पूजा करें। * मूर्तियाँ किसी भी हालत में चार इंच से अधिक लंबी न हों। * नाचते गणपति, तांडव करते शिव, वध करती कालिका आदि की मूर्तियाँ या तस्वीरें न रखें। * महादेव के लिंग के रूप की आराधना करें, मूर्ति न रखें। * पूजा करते समय मुख उत्तर या पूर्व की ओर रखें। * दीपक आग्नेय कोण में (देवालय के) ही जलाएँ। पानी उत्तर में रखें। * पूजा में शंख-घंटे का प्रयोग अवश्य करें। * निर्माल्य-पुष्प-नारियल आदि पूजा के पश्चात विसर्जित करें, घर में न रखें। * पूजा के पवित्र जल को घर के हर कोने में छिड़कें। * मीठी वस्तुओं का भोग लगाएँ। * खंडित मूर्तियों का विसर्जन कर दें। विसर्जन ...

आमतौर पर हमलोग तंत्र का मतलब समझते हैं

आमतौर पर हमलोग तंत्र का मतलब समझते हैं-जादू-टोना और अंधविश्वास और तात्रिक का मतलब होता है-टोना-टोटका करनेवाला, काले कपड़ों में लिपटा हुआ आदमी. इस समझ ने तंत्र विद्या को पर्याप्त नुकसान पहुंचाया है. मैं खुद तंत्र को इसी नजरिये से देखता था. लेकिन जैसे-जैसे यह विद्या मैं समझने लगा, मुझे बहुत अफसोस हुआ कि ऐसी परम विद्या के बारे में मैं कैसी मूर्खतापूर्ण धारणा लेकर जी रहा था. तंत्र शरीर विज्ञान को समझने का वैज्ञानिक माध्यम है. इसमें जो भी प्रयोग होते हैं वे शरीर की मर्यादा को उच्चतर अवस्था में समझने के लिए किये जाते हैं. लेकिन लंबे समय से चली आ रही पश्चिमी सोच-समझ के प्रभाव के कारण हम भी तंत्र के बारे में वैसा ही नजरिया रखते हैं जैसा कि पश्चिमी लोगों ने हमें सिखा दिया. आज क्या हम किसी वैज्ञानिक और डॉक्टर पर अंगुली उठा सकते हैं? क्या हम उसको कह सकते हैं कि तुम इन कांच और प्लास्टिक की नलियों के साथ जो खिलवाड़ कर रहे हो वह सब ढोंग-ढकोसला है. आज हम नहीं कह सकते. लेकिन हो सकता है हजार-पांच सौ साल बाद जब यह विद्या लुप्त होकर केवल कुछ लोगों के पास बचे और हम उनको इस तरह से अनुसंधान करते हुए देख...

जप का अधिकार

जप का अधिकार नित्यप्रति लोगों का कुण्डली-विचार करता हूँ। चुंकि कुण्डली देखकर व्यक्ति की ग्रह-स्थिति की जानकारी की जाती है। ग्रह-स्थिति के आधार पर ही भूत-वर्तमान-भविष्य का अनुमान(बिलकुल निश्चय नहीं)किया जाता है। समयानुसार अच्छे और बुरे(शुभ-अशुभ)ग्रहों का उपचार किया जाता है,जिसके लिए कुछ खास उपाय सुझाये जाते हैं। 1.ग्रह-यन्त्र की स्थापना करके,नियमित उनकी पूजा-अर्चना करनी होती है।यह सबसे आसान और कम खर्च वाला उपाय है। 2.ग्रह सम्बन्धी वस्तु दान,वनस्पति-स्नान,अभ्यंग आदि। ये भी सरल उपाय ही है। 3.रत्न-धारण- यह अपेक्षाकृत मंहगा उपाय है,साथ ही रत्न की शुद्धता(असली- नकली) अति महत्वपूर्ण शर्त है। 4.ग्रह-जप- इस पर कुछ विशेष विचार की आवश्यकता है। आये दिन लोग सवाल करते हैं कि जप ब्राह्मण से ही कराना क्यों जरुरी है,ग्रह से प्रभावित व्यक्ति स्वयं क्यों नहीं कर सकता ? प्रश्न अपने जगह पर बिलकुल ठीक है। जिज्ञासा स्वाभाविक है।इस सम्बन्ध में कुछ तथ्यों पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ — 1. बीमार होने पर,रोगी का कर्तव्य है कि वह योग्य चिकित्सक के पास जाय,उससे निदान कराकर,सही दवा,विश्वस्त निर्माता से लेकर स...

शुक्र को कैसे ख़राब करते हैं। मतलब शुक्र देव के सुखों को हानि कैसे पहुचाते हैं।

मित्रो आज में आपको शुक्र देव के सुखों में परेशानी होने के एक विशेष कारण सूर्य देव के सम्बन्ध में बता रहा हूँ। सूर्य देव शुक्र को कैसे ख़राब करते हैं। मतलब शुक्र देव के सुखों को हानि कैसे पहुचाते हैं। 1- जब सूर्य के साथ या सूर्य की दृष्टि में शनि देव आ जाएँ तब शुक्र देव का ही नुकसान होता है। 2- जब सूर्य के साथ शुक्र देव एक ही घर में या किसी वर्ष फल में सूर्य की दृष्टि शुक्र देव के ऊपर पड़ रही हो तब भी शुक्र देव के सुखो में कमी हो जाती है। 3- जब सूर्य देव शुक्र देव के पक्के घर 7 में बैठ जाएँ तब भी शुक्र देव के फलों में परेशानी होती है। 4- जब सूर्य देव घर 12 जोकि बिस्तर के सुखों का घर है बंहा पर सूर्य देव बैठ कर शुक्र के सुखो का नाश करते हैं। किउंकि विस्तर के सुख का कारण शुक्र देव हैं। साथ ही शुक्र को फूल भी बोला जाता है। और सूर्य तो आग का विशाल गोला है तो आग के पास फूल जल जाता है।और हाँ एक बात और सूर्य 12 बाले जातक का जीवन साथी बिस्तर पर प्यार कम और झगड़ा ज्यादा करता है। इस प्रकार से सूर्य देव शुक्र को हानि पहुंचाते हैं। शुक्र देव के सुख क्या हैं इये भी बता देता हूँ। पति पत्नी के जित...

सेहत के दुर्गा मंत्र

शास्त्रों की मान्यता है की भगवती की प्रार्थना से रोग रूपी शत्रु नष्ट हो जाते है| दुर्गा सप्तशती के मंत्र सर्वाधिक शक्ति संपन्न माने जाते है नवरात्री में दुर्गा कवच के इन मंत्रो को सिद्ध कर जपना चाहिए प्रतिदिन प्रत्येक मंत्र की दस माला जपनी चाहिए मंत्र जिस प्रकार का लिखे उसी तरह जपना चाहिए ये परम्परा से प्राप्त आर्ष मंत्र है मंत्र के बीजाक्षरो का ध्यान पूर्वक शुद्ध उच्चारण करने से लाभ होता है| १. कान के रोग के लिए:- मंत्र ॐ द्वाम द्वारवासिनीभ्याम नमः | कानो में बहरापन दर्द कान में साँय- साँय की आवाज़ सुनायी देना जेसे विकारो की शांति के लिए उक्त मंत्र का जाप करे, दवाये असर करने लगेगी| २. नेत्र रोग के लिए मंत्र :- ॐ शां शान्खिनीभ्याम नमः | इस मंत्र जाप से नेत्र विकारो का नियंत्रण हो जाता है दवाएं फलीभूत होती है सूर्योदय से पूर्व लाल फूल लेकर उक्त मंत्र का उचारण करने से आँख का दर्द नष्ट हो जाता है| ३. गले का विकार:- मंत्र ॐ चिं चित्र घंटाभ्याम नमः| गले के विकारो के नियंत्रण के लिए यह मंत्र अद्भुत प्रभावशाली सिद्ध हुआ है| ४. रीढ़ की हड्डी के लिए :- मंत्र ॐ धं धनुर्धारीभ्यां नमः| रीड की...

दैनिकजीवन में ज्योतिषीयउपचार---

दैनिकजीवन में ज्योतिषीयउपचार--- एक कुशल गृहिणी चूल्हा जलाने के बादपहली रोटी गाय के लिए औरआखिरी रोटी कुत्ते के लिए बचाकर रखती है। घर की सफाई के दौरान जब पोंछा लगाती हैतो बाल्टी के पानी में नमक मिलाती है। शाम के समय मंदिर जाते हुए चीटिंयों के लिए थोड़ा आटा और चीनी लेकर निकलती है। देखने में ये दैनिक जीवन का हिस्सा दिखाई दे सकते हैं, लेकिन अधिकांश महत्वपूर्ण ज्योतिषीय उपचार इन्हीं से जुड़े हुए हैं। महंगे रत्नों या पुरोहितों के सानिध्य में यज्ञ हवन करवाने की तुलना में रोजाना का यह मौन यज्ञ आपको कई तरह की बाधाओं से बचाकर रखता है।- -दिनचर्या से जुड़े ये नियम सामान्य नियम न होकर ज्योतिषीय उपचारों के नियम हैं। सूर्य :--------- -करें काली गाय की सेवा किसी जातक की कुंडली में सूर्य खराब परिणाम दे रहा हो तो लाल किताब के अनुसार उस जातक के मुंह से बोलते समय थूक उछलता रहता है। शरीर के कुछ अंग आंशिक या पूर्ण रूप से नकारा होने लगते हैं। ऎसे जातकों को सुबह उठकर सूर्य देवता को अध्र्यदेना चाहिए और लाल मुंह के बंदर की सेवा करनी चाहिए। आठवें का सूर्य होने परसफेद गाय के बजाय लाल या काली गायकी सेवा कर...

मंत्र - जप कहां करें ?

मंत्र - जप कहां करें ? मंत्र - साधना अथवा प्रयोग के समय गृह में किया गया जप एक गुना फल देता है । पवित्र वन या उद्यान में किया गया जप हजार गुना फल देता है । पर्वत पर किया गया जप दस हजार गुना फल देता है । नदी पर किया गया जप एक लाख गुना फल प्रदान करता है एवं देवालय व उपाश्रय में किया गया जप एक करोड़ गुना फल देता है तथा भगवान ( शिव आदि ) के समक्ष किया गया जप अनंत गुना फल देता है । बैठने का आसन पत्थर या शिला पर बिना कोई आसन बिछाए कभी जपादि नहीं करना चाहिए । सबसे अच्छा यह है कि काठ के पट्टे पर ऊनी वस्त्र , कंबल या मृगचर्म बिछाकर , उस पर बैठकर जप करना चाहिए । यदि काठ का पट्टा उपलब्ध न हो तो ऊनी वस्त्र या मृगचर्म बिछाकर एवं उस पर आसीन होकर प्रयोगात्मक मंत्र का जप करना चाहिए । मंत्र - विशारदों का कथन है कि बांस का आसन व्याधि व दरिद्रता देता है , पत्थर का आसन रोगकारक है , धरती का आसन दुःखों का अनुभव कराता है , काष्ठ का आसन दुर्भाग्य लाता है , तिनकों का आसन यश हा ह्लास करता है एवं पत्रों का आसन चित्त - विक्षेप कराता हैं । कपास , कंबल , व्याघ्र व मृगचर्म का आसन ज्ञान , सिद्धि व सौभाग्य प्राप...

अधिकतर बच्चो को हाय- टोंक -या नजर खूब लगते है

अधिकतर बच्चो को हाय- टोंक -या नजर खूब लगते है इससे बच्चे का स्वस्थ नरम हो जाता है दस्त भी लगते है उल्टीया भी हो जाती है बच्चे खूब रोते भी है ! आप पहले डाँक्टर को भी दिखा लिजीये साथ मे ये एक छोटा सा अचुक और दिव्य प्रयोग भी करे ! कच्चिघानी के सरसों का तेल लेकर उसमे काले तिल मिलाकर दर दरा पिस के रखले इसेसे रोज अपने बालक के माथे पर तिलक लगा दे थोडा सीने मे भी लगा दें ! ये तिलक इतना दिव्य और अदभूत है इसे लगाने पर चाहे किसी भी तरह का हाय -टोंक-नजर या कोई भी अला बला नही छू सकते ! यदि लगे भी होतो तिलक लगाते ही तत्काल हट जाते है ! यह तिलक कोई भी  लगा के रखता है या लगा के कही भी आये जाये उसे कोई भय नही रहता ! सारे अला बला उस से दुर रहते है ये आप आज और अभी से लगाना शुरू कर दें ! और आस पडोस के अपने भाईयो को भी जरुर बताये ये तिलक बिना मंत्र का हीं शिद्द है ! ★डूबा हुआ धन वापस पाने का तंत्र। शुक्रवार के दिन शुक्र की ही होरा में कपूर को जला कर काजल बना लें।इस काजल से भोजपत्र पर उस व्यक्ति का नाम लिखें जिसे धन दिया हुआ है।भोजपत्र को मोड़ कर उसे 7 बार हाथ से थपथपा कर कहें कि मेरा पैसा शीघ्र वा...

जन्म कुण्डली या गोचर में ३

ग्रहों के अनुकुल फल प्राप्त करने के लिये संबन्धित ग्रह की शान्ति के उपाये किये जाते है. अन्य कारणों से भी ग्रहों की शान्ति करानी आवश्यक हो जाती है. जैसे:- गण्डमूळ, गण्डान्त, अभुक्तमूल  इन अशुभ नक्षत्रों में जन्म होने पर इस अशुभता को दूर करने के लिये उपाय करने पड्ते है. गोचर में जब ग्रह अनिष्ट फल दे रहा हो या फिर दशा में कष्ट देने कि स्थिति में हों ऎसे में ग्रह के उपाय करना हितकारी रहता है. जन्म कुण्डली में जब किसी ग्रह का सहयोग प्राप्त न होने की स्थिति में उस ग्रह से जुडे उपाय करने से ग्रह का शुभ सहयोग प्राप्त होता है. ये उपाय ग्रह से संबन्धित कार्यो में भी किये जा सकते है. जैसे:- शिक्षा में रुचि कम होने पर बुध के उपाय करने लाभकारी रहते है. इसी तरह बुध से संबधित अन्य कार्यो में भी बुध के उपाय करना हितकारी रहता है. 1. बुध की वस्तुओं से स्नान बुध की वस्तुओं का स्नान करने के लिये स्नान के पानी में साबुत चावल के दाने डालकर स्नान किया जाता है. तांबे के बर्तन में जल भरकर रात भर रखने के बाद इस जल को ग्रहण किया जाता है. ऎसा करने पर तांबे के गुण जल के साथ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते...

जन्म कुण्डली या गोचर में २

नक्षत्रों से बनने वाले अशुभ योगों में जन्म लेने या फिर नक्षत्रों का अशुभ प्रभाव दूर करने के लिये नक्षत्रों की शान्ति के उपाय किये जाते है. जब किसी का जन्म गण्डमूळ, गण्डान्त, अभुक्तमूल आदि में जन्म लेने पर शान्तिविधान कराने चाहिए. कुण्ड्ली में ग्रह पीडा होने पर गोचर का जो ग्रह व्यक्ति को पीडा दे रहा हों तो निम्न प्रकार से ग्रहों की शान्ति के उपाय किये जाते है. ग्रह शान्ति की आवश्यकता अन्य कारणों से भी पड सकती है. जब किसी व्यक्ति का स्वास्थय सुधार न हो रहा हों, या फिर धन, शिक्षा, व्यवसाय संबधित विषयों में काम बनने में बाधाएं आ रही हों. इसके अलावा कार्यो में भाग्य का सहयोग प्राप्त न होने की स्थिति में ग्रहों के उपाय किये जा सकते है. नियम व विधि पूर्वक करने पर कार्यो में सफलता प्राप्ति होती है. उपाय करते समय शुद्धता व सात्विकता का पालन करना चाहिए. अन्यथा विपरीत फल प्राप्त होने की संभावना बनती है. आईये देखें की गोचर के चन्द्र के शुभ फल पाने के लिये किस प्रकार के उपाये किये जा सकते है. 1. चन्द्र की वस्तुओं से स्नान ग्रह शान्ति के लिये संबन्धित ग्रह की वस्तुओं से स्नान करना ग्रहों के उपा...

जन्म कुण्डली या गोचर में १

जन्म कुण्डली या गोचर में जब ग्रहों का शुभ फल प्राप्त न हो रहा हों या फिर पाप ग्रहों के प्रभाव में होने के कारण जब ग्रह व्यक्ति के लिये अनिष्ट या अरिष्ट का कारण बन रहे हों तो ग्रहों से संबन्धित उपाय करने से व्यक्ति के कष्टों में कमी की संभावनाएं बनती है. जब किसी व्यक्ति का स्वयं का जन्म या फिर उसकी संतान का जन्म अशुभ योगों में अर्थात गण्डमूळ, गण्डान्त, अभुक्तमूल आदि अशुभ नक्षत्रों में हुआ हों तो व्यक्ति के कुशलता व आयु वृ्द्धि के लिये शान्ति उपाय किये जाते है. व्यक्ति के जीवन की घटनाओं को ग्रह विशेष रुप से प्रभावित करते है. जैसे:- जब कोई व्यक्ति बहुत मेहनत कर रहा है. परन्तु योग्य होने पर भी उसे पदोन्नति की प्राप्ति नहीं हो रही है तो इस स्थिति में एकादश भाव के स्वामी ग्रह के उपाय करने से या फिर मंगल के उपाय करने से मनोवांछित फल प्राप्त होने की संभावना बनती है. इस प्रकार कारक ग्रह के उपाय करने पर संबन्धित उद्धेश्य की प्राप्ति होती है. आईये देखे की कुण्डली या गोचर में जब मंगल से अनिष्ट होने की संभावना हों तो कौन से उपाय किये जा सकते है. 1. मंगल की वस्तुओं से स्नान मंगल से संबन्धित वस्...

राहु को साधने का तरीका

राहु को साधने का तरीका --------------------- राहु को साधने के लिये सबसे पहले अपनी चित्त वृत्ति को साधना जरूरी है,जब मन रूपी चित्त वृत्ति को साधने की क्षमता पैदा हो जाती है तो शरीर से जो चाहो वही कार्य होना शुरु हो जाता है क्योंकि कार्य को करने के अन्दर कोई अन्य कारण या मन की कोई दूसरी शाखा पैदा नही होती है। पहला उपाय योगात्मक उपाय बताया है। जिसे त्राटक के नाम से जाना जाता है। एक सफ़ेद कागज पर एक सेंटीमीटर का वृत बना लिया जाता है उसे जहां बैठने के बाद कोई बाधा नही पैदा होती है उस स्थान पर ठीक आंखो के सामने वाले स्थान पर चिपका कर दो से तीन फ़ुट की दूरी पर बैठा जाता है,उस वृत को एक टक देखा जाता है उसे देखने के समय मे जो भी मन के अन्दर आने जाने वाले विचार होते है उन्हे दूर रखने का अभ्यास किया जाता है,पहले यह क्रिया एक या दो मिनट से शुरु की जाती है उसके बाद इस क्रिया को एक एक मिनट के अन्तराल से पन्द्रह मिनट तक किया जाता है। इस क्रिया के करने के उपरान्त कभी तो वह वृत आंखो से ओझल हो जाता है कभी कई रूप प्रदर्शित करने लगता है,कभी लाल हो जाता है कभी नीला होने लगता है और कभी बहुत ही चमकदार रूप...

सौंफ :शुक्र गृह मजबूत

सौंफ हम रोज़ तो इस्तेमाल करते है , पर क्या आपको पता है की सौंफ के सेवन से आपका शुक्र गृह मजबूत होता है , साथ में सौंफ में Calcium भी होता है जिससे आपकी हड्डियों को फायदा होता है , और अगर आप Acidity या खाने के बाद जी मिचलाने की शिकायत से झूझ रहे है तो सौंफ रामबाण है आपके लिए , खाने के बाद 1 बड़ा चमच सौंफ या तो मिस्री के साथ ले या मिस्री के बिना भी ले सेकते है , Acidity की समस्या धीरे धीरे कम होने लगेगी , सौंफ को गुड के साथ सेवन करें जब आप घर से किसी काम के लिए निकाल रहे हो , इससे आपका मंगल गृह आपका काम पूरा करने में साथ देता है | * दालचीनी : अगर किसी का मंगल और शुक्र कुपित है , तो थोड़ी सी दालचीनी को शहद में मिलाकर ताज़े पानी के साथ ले , इससे आपकी शरीर में शक्ति बढ़ेगी और सर्दियों में कफ की समस्या कम परेशान करती है | * काली मिर्च : काली मिर्च के सेवन से हमारा शुक्र और चंद्रमा अच्छा होता है , इसके सेवन से कफ की समस्या कम होती है और हमारी स्मरण शक्ति भी बढ़ती है , तांबे के किसी बर्तन में काली मिर्च डालकर dining table पर रखने से घर को नज़र नहीं लगती | सौंफ के लाभ =====================...

जीवन उपयोगी नियम ...

सूर्योदय के समय और दिन में सोने से आयु क्षीण होती है। (महाभारत, अनुशासन पर्व) * जो सिर पर पगड़ी या टोपी रख के,दक्षिण की ओर मुख करके अथवा जूते पहन कर भोजन करता है, उसका वह सारा भोजन आसुरी समझना चाहिए। (महाभारत, अनुशासन पर्वः 90.19) *जो सदा सेवकों और अतिथियों के भोजन कर लेने के पश्चात् ही भोजन करता है, उसे केवल अमृत भोजन करने वाला (अमृताशी)समझना चाहिए। (महाभारत, अनुशासन पर्व:93.13) * पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से क्रमशः दीर्घायु और सत्य की प्राप्ति होती है। भूमि पर बैठकर ही भोजन करे, चलते-फिरते कभी न करे। किसी के साथ एक पात्र में तथा अपवित्र मनुष्य के निकट बैठकर भोजन करना निषिद्ध है। (महाभारत, अनुशासन. 'दाँतों का काम आँतों से नहीं लेना चाहिए।'अति ठंडा पानी या ठंडे पदार्थ तथा अति गर्म पदार्थ या गर्म पानी के सेवन से दाँतों के रोग होते हैं। खूब ठंडा पानी या ठंडे पदार्थों के सेवन के तुरंत बाद गर्म पानी या गर्म पदार्थ का सेवन किया जाय अथवा इससे विरूद्ध क्रिया की जाय तो दाँत जल्दी गिरते हैं। * प्रातःकाल सैर अवश्य करनी चाहिए। सुबह-सुबह ओस से भीगी घास पर नंगे पैर चलना ...

नक्षत्र भी जातक का स्वभाव निर्धारित करते हैं।

नक्षत्र भी जातक का स्वभाव निर्धारित करते हैं। 1. अश्विनी : बौद्धिक प्रगल्भता, संचालन शक्ति, चंचलता व चपलता इस जातक की विशेषता होती है। 2. भरणी : स्वार्थी वृत्ति, स्वकेंद्रित होना व स्वतंत्र निर्णय लेने में समर्थ न होना इस नक्षत्र के जातकों में दिखाई देता है। 3. कृतिका : अति साहस, आक्रामकता, स्वकेंद्रित, व अहंकारी होना इस नक्षत्र के जातकों का स्वभाव है। इन्हें शस्त्र, अग्नि और वाहन से भय होता है। 4. रोहिणी : प्रसन्न भाव, कलाप्रियता, मन की स्वच्छता व उच्च अभिरुचि इस नक्षत्र की विशेषता है। 5. मृगराशि : बु्द्धिवादी व भोगवादी का समन्वय, तीव्र बुद्धि होने पर भी उसका उपयोग सही स्थान पर न होना इस नक्षत्र की विशेषता है। 6. आर्द्रा : ये जातक गुस्सैल होते हैं। निर्णय लेते समय द्विधा मन:स्थिति होती है, संशयी स्वभाव भी होता है। 7. पुनर्वसु : आदर्शवादी, सहयोग करने वाले व शांत स्वभाव के व्यक्ति होते हैं। आध्यात्म में गहरी रुचि होती है। 8. अश्लेषा : जिद्दी व एक हद तक अविचारी भी होते हैं। सहज विश्वास नहीं करते व 'आ बैल मुझे मार' की तर्ज पर स्वयं संकट बुला लेते हैं। 9. मघा : स्वाभिमानी...