ज्योतिषशास्त्र में मान्यता है की शनि और मंगल

ज्योतिषशास्त्र में मान्यता है की शनि और मंगल
ग्रह क्रूर ग्रह हैं। शनि और मंगल एक-दूसरे से वैर भाव रखते हैं। शनि मृत्यु का कारक ग्रह है और मंगल खून का। इन दोनों ग्रहों का अपने शत्रु ग्रह की राशि में एक साथ होना किसी न किसी दुघर्टना को खुला निमंत्रण देना है। मंगल एवं शनि तकनीकी विद्याओं से संबंधित नौकरी एवं व्यवसाय आदि की सूचना देते हैं।
माना जाता है कि शनि देव और श्री हनुमान भगवान शिव के भक्त हैं। हनुमान जी तपस्या में रत थे। शनि देव ने दंभ में आकर अपनी नजर से हनुमान जी को आहत करने का प्रयत्न किया मगर हुआ इसके विपरीत हनुमान जी उल्टे शनि पर भारी पड़ गए। शनि देव ने हनुमान जी को प्रतिज्ञा बद्ध होकर वचन दिया कि हनुमान भक्ति करने वाला कभी भी शनि पीड़ा नहीं भोगेगा। स्कन्द पुराण में काशी खण्ड में वृतांत आता है,कि छाया सुत श्री शनिदेव ने अपने पिता भगवान सूर्य देव से प्रश्न किया कि," हे पिता! मैं ऐसा पद प्राप्त करना चाहता हूं जिसे आज तक किसी ने प्राप्त न किया हो। आपके मंडल से मेरा मंडल सात गुना बडा हो मुझे आपसे अधिक सात गुना शक्ति प्राप्त हो मेरे वेग का कोई सामना न कर पाए चाहे वह देव,असुर,दानव,या सिद्ध साधक ही क्यों न हो आपके लोक से मेरा लोक सात गुना ऊंचा रहे। दूसरा वरदान मैं यह प्राप्त करना चाहता हूं कि मुझे मेरे आराध्य देव भगवान श्री कृष्ण के प्रत्यक्ष दर्शन हों तथा मैं भक्ति ज्ञान और विज्ञान से पूर्ण हो सकूं।"
शनिदेव की यह बात सुन कर भगवान सूर्य प्रसन्न तथा गद्गद् हुए और बोले," बेटा ! मैं भी यही चाहता हूं की तू मेरे से सात गुना अधिक शक्ति वाला हो। मैं भी तेरे प्रभाव को सहन न कर सकूं। इसके लिए तुझे तप करना होगा,तप करने के लिए तू काशी चला जा। वहां जाकर भगवान शंकर का घनघोर तप कर और शिवलिंग की स्थापना कर तथा भगवान शंकर से मनवांछित फलों की प्राप्ति कर ले।"
शनि देव ने पिता की आज्ञानुसार वैसा ही किया और तप करने के बाद भगवान शंकर के वर्तमान में भी स्थित शिवलिंग की स्थापना की जो आज भी काशी-विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है और कर्म के कारक शनि ने अपने मनोवांछित फलों की प्राप्ति भगवान शंकर से की और ग्रहों में सर्वोपरि पद प्राप्त किया।
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सुबह उठकर यह काम भूलकर भी नहीं करें दिन भर परेशान रहेंगे
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दिन की शुरुआत अच्छी हो तो पूरा दिन अच्छा रहता है। और आप यह कभी नहीं चाहेंगे कि आपका दिन उलझन और परेशानियों में बीते। लेकिन आपने महसूस किया होगा कि कभी-कभी दिन ऐसा बीतता है कि समय पर न तो भोजना मिलता है और न मन का चैन।
प्राचीन मान्यता और शास्त्रों के अनुसार इसका असली कारण सुबह के समय की गई गलतियां हैं।
शास्त्रों के अनुसार सुबह उठकर कभी भी आईने में अपनी सूरत नहीं देखनी चाहिए। इससे पूरे दिन नकारात्मक उर्जा का प्रभाव अपने उपर बना रहता है। सुबह नींद खुलते ही किसी व्यक्ति का चेहरा भी देखने से बचना चाहिए। इसका कारण यह है कि हर व्यक्ति में एक उर्जा का संचार होता है। सुबह जब नींद खुलती है तो आपका शरीर स्थिल होता है और आप दूसरे की उर्जा के प्रभाव में जल्दी आ जाते हैं। अगर कोई नकारात्मक उर्जा के प्रभाव में है तो आप भी इसके प्रभाव में आ जाते हैं।
इसलिए सबसे पहले अपने ईष्ट देवता का ध्यान करें और उनके दर्शन करें। अगर ऐसा संभव नहीं हो तो अपनी हथेली देखकर भगवान का ध्यान करें। इससे आत्मबल बढ़ेगा और सकारात्मक उर्जा का संचार होगा। एक बात और ध्यान रखने की जरुरत है कि सुबह के समय भोजन करने से पहले पशु या किसी गांव का नाम नहीं लेना चाहिए। इससे भी दिन प्रतिकूल हो जाता है। खास तौर पर बंदर तो बिल्कुल भी नहीं बोलें।
रामचरित मानस के सुंदरकंड में साफ-साफ लिखा है हनुमान जी कहते हैं मैं जिस कुल से यानी बानर कुल से हूं और जो कोई सुबह-सुबह मेरा नाम लेता है उसे उस दिन समय पर भोजन नहीं मिलता है। 'प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥' इसका मतलब यह नहीं कि आप हनुमान जी का नाम नहीं लें। हनुमान जी का खूब नाम लें लेकिन बानर शब्द नहीं बोलें।

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