मंत्र - जप कहां करें ?
मंत्र - जप कहां करें ?
मंत्र - साधना अथवा प्रयोग के समय गृह में किया गया जप एक गुना फल देता है । पवित्र वन या उद्यान में किया गया जप हजार गुना फल देता है । पर्वत पर किया गया जप दस हजार गुना फल देता है । नदी पर किया गया जप एक लाख गुना फल प्रदान करता है एवं देवालय व उपाश्रय में किया गया जप एक करोड़ गुना फल देता है तथा भगवान ( शिव आदि ) के समक्ष किया गया जप अनंत गुना फल देता है ।
बैठने का आसन
पत्थर या शिला पर बिना कोई आसन बिछाए कभी जपादि नहीं करना चाहिए । सबसे अच्छा यह है कि काठ के पट्टे पर ऊनी वस्त्र , कंबल या मृगचर्म बिछाकर , उस पर बैठकर जप करना चाहिए । यदि काठ का पट्टा उपलब्ध न हो तो ऊनी वस्त्र या मृगचर्म बिछाकर एवं उस पर आसीन होकर प्रयोगात्मक मंत्र का जप करना चाहिए ।
मंत्र - विशारदों का कथन है कि बांस का आसन व्याधि व दरिद्रता देता है , पत्थर का आसन रोगकारक है , धरती का आसन दुःखों का अनुभव कराता है , काष्ठ का आसन दुर्भाग्य लाता है , तिनकों का आसन यश हा ह्लास करता है एवं पत्रों का आसन चित्त - विक्षेप कराता हैं ।
कपास , कंबल , व्याघ्र व मृगचर्म का आसन ज्ञान , सिद्धि व सौभाग्य प्राप्त कराता है । काले मृगचर्म का आसन ज्ञान व सिद्धि प्राप्त कराता है । व्याघ्रचर्म का आसन मोक्ष व लक्ष्मी प्राप्त कराता है । रेशम का आसन पुष्टि कराता है , कंबल का आसन दुःखनाश करता है तथा कई रंगों के कंबल का आसन सर्वार्थसिद्धि देने वाला होता हैं ।
मंत्र - जप कब करें ?
सूर्य एवं चंद्र ग्रहण - उत्तम काल कहलाता है ।
कर्क एवं मकर संक्रांति - मध्यम काल है ।
रविवार व अमावस्या - कनिष्ठ काल है ।
सात्विक मंत्रों के लिए किसी भी प्रकार का जप तीनों समय उत्तम माना गया है । यानी सूर्योदय के एक घंटे पहले से एक घंटे बाद तक , मध्याह्न के एक घंटे पहले से एक घंटे बाद तक व सूर्योदय से एक घंटे पहले से एक घंटे बाद तक ।
मंत्र - साधना अथवा प्रयोग के समय गृह में किया गया जप एक गुना फल देता है । पवित्र वन या उद्यान में किया गया जप हजार गुना फल देता है । पर्वत पर किया गया जप दस हजार गुना फल देता है । नदी पर किया गया जप एक लाख गुना फल प्रदान करता है एवं देवालय व उपाश्रय में किया गया जप एक करोड़ गुना फल देता है तथा भगवान ( शिव आदि ) के समक्ष किया गया जप अनंत गुना फल देता है ।
बैठने का आसन
पत्थर या शिला पर बिना कोई आसन बिछाए कभी जपादि नहीं करना चाहिए । सबसे अच्छा यह है कि काठ के पट्टे पर ऊनी वस्त्र , कंबल या मृगचर्म बिछाकर , उस पर बैठकर जप करना चाहिए । यदि काठ का पट्टा उपलब्ध न हो तो ऊनी वस्त्र या मृगचर्म बिछाकर एवं उस पर आसीन होकर प्रयोगात्मक मंत्र का जप करना चाहिए ।
मंत्र - विशारदों का कथन है कि बांस का आसन व्याधि व दरिद्रता देता है , पत्थर का आसन रोगकारक है , धरती का आसन दुःखों का अनुभव कराता है , काष्ठ का आसन दुर्भाग्य लाता है , तिनकों का आसन यश हा ह्लास करता है एवं पत्रों का आसन चित्त - विक्षेप कराता हैं ।
कपास , कंबल , व्याघ्र व मृगचर्म का आसन ज्ञान , सिद्धि व सौभाग्य प्राप्त कराता है । काले मृगचर्म का आसन ज्ञान व सिद्धि प्राप्त कराता है । व्याघ्रचर्म का आसन मोक्ष व लक्ष्मी प्राप्त कराता है । रेशम का आसन पुष्टि कराता है , कंबल का आसन दुःखनाश करता है तथा कई रंगों के कंबल का आसन सर्वार्थसिद्धि देने वाला होता हैं ।
मंत्र - जप कब करें ?
सूर्य एवं चंद्र ग्रहण - उत्तम काल कहलाता है ।
कर्क एवं मकर संक्रांति - मध्यम काल है ।
रविवार व अमावस्या - कनिष्ठ काल है ।
सात्विक मंत्रों के लिए किसी भी प्रकार का जप तीनों समय उत्तम माना गया है । यानी सूर्योदय के एक घंटे पहले से एक घंटे बाद तक , मध्याह्न के एक घंटे पहले से एक घंटे बाद तक व सूर्योदय से एक घंटे पहले से एक घंटे बाद तक ।
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