जप का अधिकार

जप का अधिकार
नित्यप्रति लोगों का कुण्डली-विचार करता हूँ। चुंकि कुण्डली देखकर व्यक्ति की ग्रह-स्थिति की जानकारी की जाती है। ग्रह-स्थिति के आधार पर ही भूत-वर्तमान-भविष्य का अनुमान(बिलकुल निश्चय नहीं)किया जाता है। समयानुसार अच्छे और बुरे(शुभ-अशुभ)ग्रहों का उपचार किया जाता है,जिसके लिए कुछ खास उपाय सुझाये जाते हैं।
1.ग्रह-यन्त्र की स्थापना करके,नियमित उनकी पूजा-अर्चना करनी होती है।यह सबसे आसान और कम खर्च वाला उपाय है।
2.ग्रह सम्बन्धी वस्तु दान,वनस्पति-स्नान,अभ्यंग आदि। ये भी सरल उपाय ही है।
3.रत्न-धारण- यह अपेक्षाकृत मंहगा उपाय है,साथ ही रत्न की शुद्धता(असली- नकली) अति महत्वपूर्ण शर्त है।
4.ग्रह-जप- इस पर कुछ विशेष विचार की आवश्यकता है।
आये दिन लोग सवाल करते हैं कि जप ब्राह्मण से ही कराना क्यों जरुरी है,ग्रह से प्रभावित व्यक्ति स्वयं क्यों नहीं कर सकता ?
प्रश्न अपने जगह पर बिलकुल ठीक है। जिज्ञासा स्वाभाविक है।इस सम्बन्ध में कुछ तथ्यों पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ —
1. बीमार होने पर,रोगी का कर्तव्य है कि वह योग्य चिकित्सक के पास जाय,उससे निदान कराकर,सही दवा,विश्वस्त निर्माता से लेकर सेवन करे। लाभ न होने पर पुनः चिकित्सक से परामर्श ले। ऐसा नहीं कि बीमार होने पर मेडिकल कॉलेज में नामाकन करावे,पढ़े,फिर दवा की कम्पनी खोले,दवा बनावे,और तब खाये। ठीक वैसे ही ग्रह-विचार कराने के बाद उचित है कि योग्य ब्राह्मण(जो सिर्फ जन्म का ब्राह्मण नहीं,वल्कि ज्ञान,कर्म और आचार से भी ब्राह्मण हो) से जप करावे। जप के बाद नियमानुसार दशांश हवन कराये। हवन में हो सके तो स्वयं आहुति डाले,और ब्राह्मण द्वारा मन्त्रोच्चार हो। दूरस्थ,और लाचारी की स्थिति में यह अधिकार भी ब्राह्मण को ही है।
2.कोई व्यक्ति जिसे कभी किसी तरह की पूजा-जप आदि का अभ्यास नहीं है,वह यदि जप करना प्रारम्भ करेगा तो उसका जप बिलकुल निष्फल तो नहीं होगा,किन्तु काफी अधिक संख्या में करने के बाद ही लाभ मिलेगा। इसके कई कारण हैं –
(क) मकान बनाने के लिए नीव खोदना होता है। नींव जितना मजबूत होगा,मकान भी उतना ही दीर्घायु होगा। निर्माण का एक बहुत बड़ा भाग नींव में छिप जाता है।नींव के बाद ऊपर आने पर ही मकान नजर आता है।वैसे ही प्रारम्भ में किया गया जप का बहुत बड़ा भाग नींव में चला जायेगा।
(ख)किसी भी जप के लिए सही अधिकारी उसे ही कहा जा सकता है,जो सवालाख गायत्री,सवालाख नवार्ण,सवालाख शिवपंचाक्षर,सवालाख महामृत्युञ्जय आदि मन्त्रों का जप करके जप का अधिकार प्राप्त कर लिया हो। विशेष स्थिति में और भी विशेष नियम पालन करने होते हैं।
(ग) जप कर्ता का संस्कार बल भी बहुत मायने रखता है। यही कारण है कि संस्कारी का सिर्फ आशीष ही(उसके हाथ का राख- मिट्टी भी)लाभ दायक हो जाता है।
(घ) जप और प्रार्थना में बहुत अन्तर है। प्रार्थना सफल होने के लिए शुद्ध और शान्त मन चाहिए। मन को शुद्ध और शान्त करने के लिए भी प्रार्थना ही सही उपाय है,अतः मन कैसा भी हो बस बैठ जायें, प्रार्थना पर। धीरे-धीरे सही प्रार्थना होने लगेगी।
(ङ) प्रार्थना के लिए अधिकारी विचार की कोई आवश्यकता नहीं। वैसे इस सम्बन्ध में और भी बातें जानने योग्य है,विचारने योग्य हैं।फिलहाल इतना ही। साधुवाद।

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