ग्रहण दोष निवारण

लग्न कुंडली में किसी भी भाव में सूर्य के साथ केतु या चंद्रमा के साथ राहू की युति हो तो ग्रहण योग बनता है |इसके अलावा सप्तम या द्वादश भाव में नीच के शुक्र [कन्या राशी में ] के साथ राहू की युति को भी कुछ विद्वान ग्रहण दोष की संज्ञा देते है | ग्रहण योग का दुष्प्रभाव कुंडली के विभिन्न भावों में अलग
– अलग देखने को मिलता है | प्रथम भाव- व्यक्ति गुस्सेल, स्वस्थ्य में कमी, रुखा स्वभाव व निज स्वार्थ सर्वोपरी मानने वाला होता है |
द्वितीय भाव- धन की चिंता करना, सरकारी छापे राजकार्य में धन की बर्बादी और मेहनत का परिणाम अल्प मिलता है |
तीसरा भाव- भाई-बंधुओ से कलह रहती है | यह योग जातक को शांतचित नही रहने देता |
चतुर्थ भाव- मानसिक परेशानी व अस्थिरता, निकटस्थ लोगो से वैचारिक मतभेद व हीनभावना से ग्रस्त व्यक्ति होता है |
पंचम भाव- बचपन कठोर व वृद्धावस्था संघर्षो से भरी हुई होती है | दरिद्रता, मित्रो का अभाव व गृह कलह रहता है |
छठा भाव- विविध रोग विशेष कर हृदय रोग, कदम कदम पर दुश्मनी पालने वाला, परस्त्रीगामी, संदेहास्पद व्यक्तित्व का जातक होता है |
सप्तम भाव- क्रोधी स्वभाव, कायाक्षीण, द्वि- भार्या योग,संकीर्ण मनोवृति व जीवनसाथी हमेशा स्वस्थ्य से संघर्षशील रहता है |
अष्टम भाव- अल्पायु योग का निर्माण, दुर्घटना का भय, बीमारी व दुष्ट मित्रो के माध्यम से धन का नाश होता है | यदि अन्य योग ठीक हो तो अल्पायु योग समाप्त हो सकता है
नवम भाव- शिक्षा व आजीविका के लिए निरंतर संघर्ष, व्यर्थ की यात्राएं, किसी का भी सहयोग नही, भाग्य वृद्धि 48 वर्ष के पश्चात होती है |
दशम भाव- माता-पिता के सुख में कमी, असंयमी, रोजगार के लिए संघर्षशील व्यक्ति रहता है |
ग्यारवाँ भाव- जिद्दी, गलत बात पर अड़ने वाला, आय के साधन अनिश्चित, ठगी, खुद भी धोका खा सकता है |
बारहवां भाव- संघर्षशील व परेशानो का भरा जीवन, प्रेम विवाह [जाती से बहार] योग, व्यर्थ के व्ययों की भरमार, पिता के सुख में कमी व निरंतर उत्थान पतन का सामना करना पड़ता है |
दोष निवारण उपाय ==================
 जयंती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी |
दुर्गा क्षमा शिव धात्री, स्वाहा सवधा नमोस्तुते ||
ग्रहण योगजनित दोषों का निवारण जयंती का अवतार जीण की आराधना से होता है | इसका ज्वलंत उदाहरण यह है के हमारे यहाँ पर ग्रहण काल में किसी भी देवी-देवता की पूजा नही होती है | जबकि जीण की पूजा ग्रहण काल में भी मान्य है | गृह जनित योग यहाँ पर निष्प्रभावी हो जाते है | इस लिए जिन लोगो की कुंडली में ग्रहण-दोष है, वे निम्न प्रकार जीण की आराधना करे | जीण के नाम से संकल्प लेकर शुक्लपक्ष की अष्टमी के 42 उपवास करे | यदि ग्रहण दोष 1 , 3 , 6 , 8 , 11 , व 12 , भावों में है, तो शुक्लपक्ष की एकम से जीण की प्रतिमा के आगे तेल की अखंड जोत जलाकर अष्टमी तक नित्य पूजा अर्चना करे | शेष भावों 2 , 4 , 5 , 7 , 9 व 10 , भावों में ग्रहण दोष है, तो अखंड जोत घी की जलाई जाती है व शेष क्रिया यथावत रखे | इससे ग्रह दोष जनित बाधाओं का निवारण होता है |
सुदर्शन यंत्र
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शाश्त्रो में सुदर्शन यंत्र की उत्पत्ति भगवान विष्णु के सुदार्शनावतार से बताई गयी है | भगवन विष्णु के इस अवतार का पूजन सुदर्शन यंत्र के द्वारा किया जाना विशेष लाभकारी बताया गया है | इसी मान्यता है की यह यंत्र श्री नाथजी का भी परम प्रिय है | यह यंत्र सभी प्रकार के अशुभ प्रभावों एवं दुष्प्रभावों नष्ट करके रक्षा प्रदान करने वाला है |इस यंत्र के पूजन से व्यापार एवं आमजन को भी लाभ मिलता है |
पूजन विधि- सुदर्शन यंत्र की स्थापना, कार्यस्थल या अपने निवास के पूजन घर में पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्ध योग, त्रिपुष्कर योग या अन्य किसी विशेष मुहूर्त में करे | पंचोपचार या षोड़शोपचार से पूजन करने के बाद पंचामृत से यंत्र का पुरुष सूक्त एवं श्रीसूक्त से अभिषेक करे | इसके बाद सुदर्शन कवच का पाठ एवं क्ली बीज मंत्र का जप करे | यंत्र का निर्माण भोजपत्र, ताम्रपात्र, चांदी या स्वर्ण पर करवाएं | यह यंत्र किसी पंडित से बनवा ले या खरीद ले

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