क्या आपका मकान पूर्व मुखी है
क्या आपका मकान पूर्व मुखी है
यदि भूखण्ड या भवन के पूर्व दिशा की ओर मार्ग हो तो भवन पूर्वाभिमुख होगा। ऐसे भूखण्ड पर भाव निर्माण करते समय कुछ महत्वपूर्ण शुभ व अशुभ बातों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए, वरना अपयश, स्वास्थ्य हानि व धन का अभाव रहता है।
शुभता हेतु अवश्य करे:
यदि भवन पूर्व व उत्तर दिशा या ईशान कोण की दिशा में स्थान छोड़कर बनाएं, तो धन संपत्ति, पुत्र लाभ, वंश वृद्धि के साथ उत्तम स्वास्थ्य के लिये शुभ रहेगा। पॉजिटिव विचार तथा भाग्यवर्धक संपर्कों से जीवन में प्रसन्नता व अच्छे मित्रों के कारण घर में चहल-पहल रहेगी।
भूखण्ड या भवन में पूर्व भाग नीचा हो तो भवन के स्वामी उर्जामय रहेंगे। अच्छी सोच के लिये उगते सूरज के दर्शन आरोग्य भाग्य व यश की प्राप्ति प्रदान करता है।
पूर्व मुखी भवन के मुख्यद्वार के अतिरिक्त अन्य द्वार भी पूर्व की ओर रखने पर ज्यादा विधायक उर्जा का प्रवेश होगा। परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अस्थमा व कफ से प्रभावित रोग दूर होते हैं।
पूर्व व उत्तर दिशा की ओर बाहर बनायी गई बालकनी अति शुभ होती है। ये ऐसा लगेगा जैसे कोई भक्त प्रभु से आर्शीवाद मांग रहा है।
पूर्व दिशा में बरामदा नीचा रखने पर घर में स्वास्थ, धन व यश की वृद्धि होती है। पति-पत्नी में व्यर्थ के संघर्ष नहीं होते हैं। शक्ति व सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
पूर्व दिशा में चारदीवारी के पड़ोस में स्थित भवन का स्वामी यदि अपना भवन का निर्माण करता है तो उसे दीवार तीन फुट खाली स्थान छोड़कर 4 फुट दीवार ऊँची बनानी चाहिए।
भवन में पूर्व दिशा या ईशान कोण में कुआं, हैडपंप या ट्यूबवैल या अन्य जलस्रोत अवश्य बनाना चाहिए। लक्ष्मी का आगमन होता है।
पूर्व दिशा की दीवार दक्षिण व पश्चिम की दीवार से छोटी बनानी चाहिए। क्योंकि सूर्य का तेज, शक्ति, अधिकार, पद, प्रतिष्ठा व प्रशासन का आशीर्वाद तभी देता है जब पूर्व की दीवार छोटी हो। ऊँची न हो। पूर्व दिशा के स्वामी इंद्र कहे जाते हैं स्वर्ग लोक व देवगणों के अध्यक्ष होने के कारण यदि सूर्य का प्रकाश सीधा भवन पर आता है तो भोग विलास, सुख, वैभव तभी मिलते हैं।
संतान की वृद्धि, स्वास्थ्य, विचारक क्षमता व दीर्घ जीवन भी पूर्व दिशा में उगते सूर्य को जल देने से ही प्राप्त होता है।
अशुभता से बचाव के लिये भूलकर भी पूर्व दिशा का भवन, स्थल या बरामदा अधिक ऊँचा (दक्षिण-पश्चिम से भी ऊँचा) न बनायें वरना आर्थिक संकट, अस्वस्थ संतान व मंदबुद्धि के कारण डॉक्टरों के चक्कर लगायेंगे।
यदि पूर्व दिशा में मुख्य मार्ग से हटकर भवन बनाये व पश्चिम की ओर रिक्त स्थान अधिक होगा तो भवन के स्वामी का धन बीमारी में व्यय होगा तथा आयु भी कम होगी।
यदि पूर्व व उत्तर दिशा में भवन निर्माण के समय रिक्त स्थान नहीं होती तो संतान प्राप्ति में दिक्कत होती है।
पूर्व मुखी भवन में दक्षिण पूर्व (आग्नेय) कोण में कोई मुख्य द्वार या अन्य द्वार न बनाये वरना मुकद्दमे, आर्थिक तंगी, चोरी व अग्नि का भय बना रहता है।
पूर्व दिशा या ईशान कोण को गंदा या अपवित्र न रखे। इस दिशा में पत्थर कूढ़े का ढेर या मिट्टी का टीला आदि न बनायें वरना धन की तंगी रहेगी व संतान आज्ञाकारी नहीं रहेगी।
पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो तथा पश्चिम दिशा नीची हो तो भवन का स्वामी रोगी, दु:खी, नेत्र रोग, लकवा मार जाना आदि भीषण रोगों से घिरा रहता है।
यदि भवन में किरायेदार रहता हो तो स्वयं ऊँचे फ्लोर में रहे व किरायेदार को नीचे के फ्लोर में रखे। नीचे का भाग खाली न रखें उसे प्रयोग में लायें वरना अनचाही समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
पूर्व दिशा में अधिक वजन रखना, लोहे की मशीनरी रखना, भारी प्रेस प्रिटिंग का होना, पत्थर का सीमेंट की बोरियां रखना या लोहे के पाइप व सरिया आदि रखना अशुभ है। आर्थिक संकट, चोरी होना तथा ऐश्वर्य में कमी आ जाती है। स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। दमा, अस्थमा व सांस लेने में दिक्कत होती है। पति-पत्नी में आपस भी मतभेद रहते हैं। पुलिस व सरकारी कार्यों में रूकावटें आती है। मुकद्दमें बाजी में धन का व्यय होता है। नेत्र रोग व दृष्टि विकार तंग करता है।
यदि भूखण्ड या भवन के पूर्व दिशा की ओर मार्ग हो तो भवन पूर्वाभिमुख होगा। ऐसे भूखण्ड पर भाव निर्माण करते समय कुछ महत्वपूर्ण शुभ व अशुभ बातों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए, वरना अपयश, स्वास्थ्य हानि व धन का अभाव रहता है।
शुभता हेतु अवश्य करे:
यदि भवन पूर्व व उत्तर दिशा या ईशान कोण की दिशा में स्थान छोड़कर बनाएं, तो धन संपत्ति, पुत्र लाभ, वंश वृद्धि के साथ उत्तम स्वास्थ्य के लिये शुभ रहेगा। पॉजिटिव विचार तथा भाग्यवर्धक संपर्कों से जीवन में प्रसन्नता व अच्छे मित्रों के कारण घर में चहल-पहल रहेगी।
भूखण्ड या भवन में पूर्व भाग नीचा हो तो भवन के स्वामी उर्जामय रहेंगे। अच्छी सोच के लिये उगते सूरज के दर्शन आरोग्य भाग्य व यश की प्राप्ति प्रदान करता है।
पूर्व मुखी भवन के मुख्यद्वार के अतिरिक्त अन्य द्वार भी पूर्व की ओर रखने पर ज्यादा विधायक उर्जा का प्रवेश होगा। परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अस्थमा व कफ से प्रभावित रोग दूर होते हैं।
पूर्व व उत्तर दिशा की ओर बाहर बनायी गई बालकनी अति शुभ होती है। ये ऐसा लगेगा जैसे कोई भक्त प्रभु से आर्शीवाद मांग रहा है।
पूर्व दिशा में बरामदा नीचा रखने पर घर में स्वास्थ, धन व यश की वृद्धि होती है। पति-पत्नी में व्यर्थ के संघर्ष नहीं होते हैं। शक्ति व सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
पूर्व दिशा में चारदीवारी के पड़ोस में स्थित भवन का स्वामी यदि अपना भवन का निर्माण करता है तो उसे दीवार तीन फुट खाली स्थान छोड़कर 4 फुट दीवार ऊँची बनानी चाहिए।
भवन में पूर्व दिशा या ईशान कोण में कुआं, हैडपंप या ट्यूबवैल या अन्य जलस्रोत अवश्य बनाना चाहिए। लक्ष्मी का आगमन होता है।
पूर्व दिशा की दीवार दक्षिण व पश्चिम की दीवार से छोटी बनानी चाहिए। क्योंकि सूर्य का तेज, शक्ति, अधिकार, पद, प्रतिष्ठा व प्रशासन का आशीर्वाद तभी देता है जब पूर्व की दीवार छोटी हो। ऊँची न हो। पूर्व दिशा के स्वामी इंद्र कहे जाते हैं स्वर्ग लोक व देवगणों के अध्यक्ष होने के कारण यदि सूर्य का प्रकाश सीधा भवन पर आता है तो भोग विलास, सुख, वैभव तभी मिलते हैं।
संतान की वृद्धि, स्वास्थ्य, विचारक क्षमता व दीर्घ जीवन भी पूर्व दिशा में उगते सूर्य को जल देने से ही प्राप्त होता है।
अशुभता से बचाव के लिये भूलकर भी पूर्व दिशा का भवन, स्थल या बरामदा अधिक ऊँचा (दक्षिण-पश्चिम से भी ऊँचा) न बनायें वरना आर्थिक संकट, अस्वस्थ संतान व मंदबुद्धि के कारण डॉक्टरों के चक्कर लगायेंगे।
यदि पूर्व दिशा में मुख्य मार्ग से हटकर भवन बनाये व पश्चिम की ओर रिक्त स्थान अधिक होगा तो भवन के स्वामी का धन बीमारी में व्यय होगा तथा आयु भी कम होगी।
यदि पूर्व व उत्तर दिशा में भवन निर्माण के समय रिक्त स्थान नहीं होती तो संतान प्राप्ति में दिक्कत होती है।
पूर्व मुखी भवन में दक्षिण पूर्व (आग्नेय) कोण में कोई मुख्य द्वार या अन्य द्वार न बनाये वरना मुकद्दमे, आर्थिक तंगी, चोरी व अग्नि का भय बना रहता है।
पूर्व दिशा या ईशान कोण को गंदा या अपवित्र न रखे। इस दिशा में पत्थर कूढ़े का ढेर या मिट्टी का टीला आदि न बनायें वरना धन की तंगी रहेगी व संतान आज्ञाकारी नहीं रहेगी।
पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो तथा पश्चिम दिशा नीची हो तो भवन का स्वामी रोगी, दु:खी, नेत्र रोग, लकवा मार जाना आदि भीषण रोगों से घिरा रहता है।
यदि भवन में किरायेदार रहता हो तो स्वयं ऊँचे फ्लोर में रहे व किरायेदार को नीचे के फ्लोर में रखे। नीचे का भाग खाली न रखें उसे प्रयोग में लायें वरना अनचाही समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
पूर्व दिशा में अधिक वजन रखना, लोहे की मशीनरी रखना, भारी प्रेस प्रिटिंग का होना, पत्थर का सीमेंट की बोरियां रखना या लोहे के पाइप व सरिया आदि रखना अशुभ है। आर्थिक संकट, चोरी होना तथा ऐश्वर्य में कमी आ जाती है। स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। दमा, अस्थमा व सांस लेने में दिक्कत होती है। पति-पत्नी में आपस भी मतभेद रहते हैं। पुलिस व सरकारी कार्यों में रूकावटें आती है। मुकद्दमें बाजी में धन का व्यय होता है। नेत्र रोग व दृष्टि विकार तंग करता है।
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