जीवन उपयोगी नियम ...

सूर्योदय के समय और दिन में सोने से आयु क्षीण होती है। (महाभारत, अनुशासन पर्व)
* जो सिर पर पगड़ी या टोपी रख के,दक्षिण की ओर मुख करके अथवा जूते पहन कर भोजन करता है, उसका वह सारा भोजन आसुरी समझना चाहिए। (महाभारत, अनुशासन पर्वः 90.19)
*जो सदा सेवकों और अतिथियों के भोजन कर लेने के पश्चात् ही भोजन करता है, उसे केवल अमृत भोजन करने वाला (अमृताशी)समझना चाहिए। (महाभारत, अनुशासन पर्व:93.13)
* पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से क्रमशः दीर्घायु और सत्य की प्राप्ति होती है। भूमि पर बैठकर ही भोजन करे, चलते-फिरते कभी न करे। किसी के साथ एक पात्र में तथा अपवित्र मनुष्य के निकट बैठकर भोजन करना निषिद्ध है। (महाभारत, अनुशासन.
'दाँतों का काम आँतों से नहीं लेना चाहिए।'अति ठंडा पानी या ठंडे पदार्थ तथा अति गर्म पदार्थ या गर्म पानी के सेवन से दाँतों के रोग होते हैं। खूब ठंडा पानी या ठंडे पदार्थों के सेवन के तुरंत बाद गर्म पानी या गर्म पदार्थ का सेवन किया जाय अथवा इससे विरूद्ध क्रिया की जाय तो दाँत जल्दी गिरते हैं।
* प्रातःकाल सैर अवश्य करनी चाहिए। सुबह-सुबह ओस से भीगी घास पर नंगे पैर चलना आँखों के लिए विशेष लाभदायी है। शौच व लघुशंका के समय मौन रहना चाहिए। मल-विसर्जन के समय बायें पैर पर दबाव रखें। इस प्रयोग से बवासीर रोग नहीं होता। पैर के पंजों के बल बैठकर पेशाब करने से मधुमेह की बीमारी नहीं होती। भोजन के बाद पेशाब करने से पथरी का डर नहीं रहता।
* 'गले से नीचे के शारीरिक भाग पर गर्म (गुनगुने) पानी से स्नान करने से शक्ति बढ़ती है, किंतु सिर पर गर्म पानी डालकर स्नान करने से बालों तथा नेत्रशक्ति को हानि पहुँचती है।'(बृहद वाग्भट, सूत्रस्थानः अ.3)
* प्रतिदिन स्नान करने से पूर्व दोनों पैरों के अँगूठों में सरसों का शुद्ध तेल लगाने से वृद्धावस्था तक नेत्रों की ज्योति कमजोर नहीं होती।
* लक्ष्मी की इच्छा रखने वाले को रात में दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए। यह नरक की प्राप्ति कराने वाला है।(महाभारत अनुशासन पर्व)
* एक बार पकाया हुआ भोजन दुबारा गर्म करके खाने से शरीर में गाँठें बनती हैं, जिससे टयूमर की बीमारी हो सकती है।
* कुत्ता रखने वालों के लिए स्वर्गलोक में स्थान नहीं है। उनका पुण्य क्रोधवश नामक राक्षस हर लेते हैं। (महाभारत महाप्रयाण पर्वः 3.10)
* जो मनुष्य पीपल के वृक्ष को देखकर प्रणाम करता है, उसकी आयु बढ़ती है तथा जो इसके नीचे बैठकर धर्म- कर्म करता है, उसका कार्य पूर्ण हो जाता है। जो मूर्ख मनुष्य पीपल के वृक्ष को काटता है, उसे इससे होने वाले पाप से छूटने का कोई उपाय नहीं है।(पद्म पुराण खंड 7, अ.12)
*सभी पक्षों की अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी और अष्टमी-इन सभी तिथियों में स्त्री समागम करने से नीच योनि एवं नरकों की प्राप्ति होती है। (महाभारत, अनुशासन पर्व, दानधर्म पर्वः 104.29.30)
*दिन में और दोनों संध्याओं के समय जो सोता है या स्त्री- सहवास करता है, वह सात जन्मों तक रोगी और दरिद्र होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण)
* ब्रह्महत्या से जो पाप लगता है उससे दुगना पाप गर्भपाप करने से लगता है। इस गर्भपातरूप महापाप का कोई प्रायश्चित भी नहीं है ( पाराशर स्मृतिः 4.20)
* बाल तथा नाखून काटने के लिए बुधवार और शुक्रवार के दिन योग्य माना जाते हैं। एकादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, सूर्य- संक्रान्ति, शनिवार, मंगलवार, गुरुवार, व्रत तथा श्राद्ध के दिन बाल एवं नाखून नहीं काटने चाहिए, न ही दाढ़ी बनवानी चाहिए।

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