समस्त लोको में भगवान सूर्य ही व्याप्त हैं।
समस्त लोको में भगवान सूर्य ही व्याप्त हैं।
भगवान सूर्य को नमस्कार करने से सभी देवताओं को नमस्कार हो जाता है। श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान भी सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण ने सृष्टि के आदिकाल में सूर्य को ही दिया था। जो पितरों के उद्धेश्य से शीतल जल सूर्य़ भगवान को अर्पित करता है उसके पितर नरकों से मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं। संक्राति तथा ग्रहण काल में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है।
सप्तमी के दिन विशेष रूप से इनकी पूजा करनी चाहिए। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को ही संक्राति कहते हैं। जब सूर्य़ नारायण उदय होते हैं तो सभी लोकों में प्रकाश होता है। यह दिन रात्रि मूर्हत आदि काल स्वरूप भगवान सूर्य का ही प्रभाव है।
एक समय दुर्वासा मुनि द्वारिकापुरी आए विकृत रूप वाले मुनी को देख कर भगवान कृष्ण के जामवंति नाम की पत्नी से प्राप्त हुए पुत्र साम्ब ने अपने सुंदर रूप के अंहकार में आ कर उनका उपहास उड़ाया। साम्ब का अहंकार देख मुनि को क्रोध आ गया उन्होंने उसे भयंकर कुष्ठ रोग हो जाने का श्राप दे दिया। श्राप प्राप्त कर साम्ब ने भगवान श्री कृष्ण से कुष्ठ रोग दूर करने का उपाय पूछा तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा की तुम भगवान सूर्य़ नारायण की अराधना करो। इससे तुम्हारा कुष्ठ रोग दूर हो जाएगा। तब पिता की आज्ञा मान कर साम्ब सिंधु के उत्तर में उत्तर भागा नदी के तट पर सूर्य़ क्षेत्र में जाकर तपस्या करने लगे।
उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर सूर्य़ भगवान ने दर्शन दिए उन्होंने साम्ब के शरीर से कुष्ठ रोग दूर किया तथा वह फिर से सुंदर रूप संपन्न हो गया। साम्ब ने भगवान सूर्य नारायण की पूजा सहस्र नामों से की थी लेकिन सूर्य भगवान ने अपने इक्किस नाम साम्ब को बताए और कहा की यह नाम सहस्र नामों के तुल्य हैं। भगवान सूर्य ने साम्ब से कहा,"मैं अपने अतिशय गोपनीय, पवित्र इक्कीस शुभ नामों को बताता हूं। इनके पाठ करने से सहस्त्र नाम के पाठ का फल प्राप्त होगा।"
भगवान सूर्य नारायण के इक्कीस नाम इस प्रकार हैं-
1) विकर्तन ( विप्पतिओं को काटने तथा नष्ट करने वाले)
2) विवस्वान (प्रकाश रूप)
3) मार्तंड (जिन्होंने अंड में बहुत दिनों निवास किया)
4) भास्कर
5) रवि
6) लोकप्रकाशक
7) श्रीमान
8) लोक चक्षु
9) गृहेश्वर
10) लोक साक्षी
11) त्रिलोकेश
12) कर्ता
13) हर्ता
14) तमिस्त्रहा (अन्धकार को नष्ट करने वाले)
15) तपन
16) तापन
17) शुचि ( पवित्रतम)
18) सप्ताश्ववाहन
19) गभस्तिहस्त ( किरणे ही जिनके हाथ स्वरुप हैं )
20) ब्रह्मा
21) सर्वदेवनमस्कृत।
भगवान सूर्य कहते हैं कि यह इक्कीस नाम मुझे बहुत प्रिय हैं। यह स्तव राज के नाम से प्रसिद्ध हैंं। यह स्तव राज शरीर को निरोग बनाने वाला, धन की वृद्धि करने वाला, यश प्रदान करने वाले हैं। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र मरिचि की संतान कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र के स्वरूप सूर्य़ नारायण के रूप में प्रकट हुए। प्रात: काल में ऋगवेद, मध्यकाल में यजुर्वेद, सन्ध्या काल में सामवेद इनकी स्तुती करते हैं। चन्द्रमा ग्रह नक्षत्र तथा तारागनों में सूर्य नारायण का ही प्रकाश है।
भगवान सूर्य को नमस्कार करने से सभी देवताओं को नमस्कार हो जाता है। श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान भी सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण ने सृष्टि के आदिकाल में सूर्य को ही दिया था। जो पितरों के उद्धेश्य से शीतल जल सूर्य़ भगवान को अर्पित करता है उसके पितर नरकों से मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं। संक्राति तथा ग्रहण काल में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है।
सप्तमी के दिन विशेष रूप से इनकी पूजा करनी चाहिए। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को ही संक्राति कहते हैं। जब सूर्य़ नारायण उदय होते हैं तो सभी लोकों में प्रकाश होता है। यह दिन रात्रि मूर्हत आदि काल स्वरूप भगवान सूर्य का ही प्रभाव है।
एक समय दुर्वासा मुनि द्वारिकापुरी आए विकृत रूप वाले मुनी को देख कर भगवान कृष्ण के जामवंति नाम की पत्नी से प्राप्त हुए पुत्र साम्ब ने अपने सुंदर रूप के अंहकार में आ कर उनका उपहास उड़ाया। साम्ब का अहंकार देख मुनि को क्रोध आ गया उन्होंने उसे भयंकर कुष्ठ रोग हो जाने का श्राप दे दिया। श्राप प्राप्त कर साम्ब ने भगवान श्री कृष्ण से कुष्ठ रोग दूर करने का उपाय पूछा तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा की तुम भगवान सूर्य़ नारायण की अराधना करो। इससे तुम्हारा कुष्ठ रोग दूर हो जाएगा। तब पिता की आज्ञा मान कर साम्ब सिंधु के उत्तर में उत्तर भागा नदी के तट पर सूर्य़ क्षेत्र में जाकर तपस्या करने लगे।
उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर सूर्य़ भगवान ने दर्शन दिए उन्होंने साम्ब के शरीर से कुष्ठ रोग दूर किया तथा वह फिर से सुंदर रूप संपन्न हो गया। साम्ब ने भगवान सूर्य नारायण की पूजा सहस्र नामों से की थी लेकिन सूर्य भगवान ने अपने इक्किस नाम साम्ब को बताए और कहा की यह नाम सहस्र नामों के तुल्य हैं। भगवान सूर्य ने साम्ब से कहा,"मैं अपने अतिशय गोपनीय, पवित्र इक्कीस शुभ नामों को बताता हूं। इनके पाठ करने से सहस्त्र नाम के पाठ का फल प्राप्त होगा।"
भगवान सूर्य नारायण के इक्कीस नाम इस प्रकार हैं-
1) विकर्तन ( विप्पतिओं को काटने तथा नष्ट करने वाले)
2) विवस्वान (प्रकाश रूप)
3) मार्तंड (जिन्होंने अंड में बहुत दिनों निवास किया)
4) भास्कर
5) रवि
6) लोकप्रकाशक
7) श्रीमान
8) लोक चक्षु
9) गृहेश्वर
10) लोक साक्षी
11) त्रिलोकेश
12) कर्ता
13) हर्ता
14) तमिस्त्रहा (अन्धकार को नष्ट करने वाले)
15) तपन
16) तापन
17) शुचि ( पवित्रतम)
18) सप्ताश्ववाहन
19) गभस्तिहस्त ( किरणे ही जिनके हाथ स्वरुप हैं )
20) ब्रह्मा
21) सर्वदेवनमस्कृत।
भगवान सूर्य कहते हैं कि यह इक्कीस नाम मुझे बहुत प्रिय हैं। यह स्तव राज के नाम से प्रसिद्ध हैंं। यह स्तव राज शरीर को निरोग बनाने वाला, धन की वृद्धि करने वाला, यश प्रदान करने वाले हैं। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र मरिचि की संतान कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र के स्वरूप सूर्य़ नारायण के रूप में प्रकट हुए। प्रात: काल में ऋगवेद, मध्यकाल में यजुर्वेद, सन्ध्या काल में सामवेद इनकी स्तुती करते हैं। चन्द्रमा ग्रह नक्षत्र तथा तारागनों में सूर्य नारायण का ही प्रकाश है।
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