जब कोई उपाय काम न करेःप्रार्थना की शक्ति आजमाइए

जब कोई उपाय काम न करेःप्रार्थना की शक्ति आजमाइए
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प्रकृति एवं अस्तित्व की व्यवस्थाः प्राथना की आंख से देखिए
इस पर एक लधु कहानी याद आती है। एक शिव मन्दिर का श्रद्धालु पुजारी रोज मन से प्रार्थना करता था। गाँव में एक दिन बाढ़ आई।सबसे पहले मन्दिर का चैकीदार दौड़ा-दौड़ा आया ‘भागो पुजारी जी। पानी बढ़ता जा रहा है।’ थोडी देर में गाँव के लोग आये कि हमारे साथ चलो, पानी बढ़ रहा है। पुजारी को अपने भगवान पर भरोसा था। वह प्रार्थना करता रहा। स्वयं प्रभु आयेंगें तभी वह जायेगा। पानी बढता गया तो एक नाविक आया कि बैठो नाव में। नासमझ पुजारी न बैठा। तब तक पानी और बढ़ चुका था। वह अपने मन्दिर की छत पर चला गया एवं पूजा करता रहा। वहाँ पर भी पानी भरने लगा। पानी निरन्तर बढ़ता जा रहा था। तब एक हैलिकाॅप्टर आया। हैलिकाॅप्टर से राहत कर्मी नेने पुकारापुकारा ‘‘पकड़ो रस्सी व चढ़ो ऊपर।’’ लेकिन तब भी वह न चढ़ा।
प्रार्थना मन से करता रहा। पुजारी ईश्वर को अन्त तक पुकारता रहा कि मेरे प्रभु आयेगें -आयंेगें करते-करते वह बाढ़ में बह गया। मर कर वह जब स्वर्ग में गया तो अपनी नाराजगी प्रभु से प्रकट करने लगा ‘मुझे बचाने नहीं आये जब कि मैं आपकी प्रतिदिन सच्ची भक्ति करता था’ तब उसे दिव्य वाणी सुनाई दी: ‘‘अरे भक्त ! मैं तुझे बचाने चार बार आया। पहली बार चैकीदार के रूप में,दूसरी बार गाँव वालों के साथ, तीसरी बार नाविक के रूप में फिर। अन्त में हैलिकाॅप्टर में बैठकर आया लेकिन तू न पहचान पाया।
क्या मैं गले में साॅप लटका कर जटा बढ़ा कर शिव का रूप धरकर आता तभी तू पहचानता? उस सब में भी में ही बसता हूॅ,वह मैं ही था। तेरे अविश्वास एवं अज्ञान ने ही तुझे डुबाया है। मेरा उसमें क्या दोष है।?’ ’ प्रार्थना का अर्थ अपनी आत्मा की उच्चतर शक्ति के पास पहँुचाना होता है। जैसा कि पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने कहा है हरेक को अपने लिए सर्वोत्तम तरीका खोजना होता है। इसमें भटकाव आते है, तो आने दीजिए। कोई प्रार्थना का बंधा-बंधाया तरीका नहीं है। प्रार्थना जीवन के प्रति एक दृष्टिकोण है। यह स्वयं को समर्पण कर देना और वास्तविकता को स्वीकार करना है।
जब शरीर और मस्तिष्क ब्रह्माण्ड की स्वरलहरियों से सामंजस्य में हों तब प्रेम की भावनाऐं उमड़ पड़ती है। प्रार्थना मांग नहीं है, सहज भाव से बिना किसी क्षुद्र मांग के परमात्मा को पुकारना है। जहाँ व्यक्ति की सीमा समाप्त होती है, वहीं से परमात्मा की सीमा प्रारम्भ होती है। अर्थात जहाँ हमारे प्रयत्न वांछित परिणाम नहीं ला पाते हंैै, तब प्रार्थना करनी चाहिये। जब प्रयत्न की सीमा आ जाए तो प्रार्थना करो। प्रार्थना किससे करे व क्यों करे? उसकी विषयवस्तु क्या हो? स्वरूप क्या हो? यह सब सोच कर तय करें। तभी अंग्रेजी में कहावत है कि ईष्वर उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हंै।
ऊर्जावान बनाती है प्रार्थना
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हमारा सबसे बड़ा सहायक कौन है? अस्तित्व कहो या परमात्मा से बढ़कर हमारा कोई सहायक धरती पर नहीं है। इस ईश्वर की शक्ति को पहचानना एवं प्रयोग करने की कला का नाम प्रार्थना है। तभी तो हमारे पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा है ईश्वर को हमारे भीतर महसूस करने की शक्ति को प्रार्थना कहते है। उन्होंने लिखा है कि ईश्वर के साथ हर काम में मेरी सहभागिता है। मुझे मालूम था कि जितनी योग्यता मेरे पास है अच्छा काम करने के लिए उससे और ज्यादा योग्यता होना जरूरी है। इसलिए मुझे मदद की आवश्यकता है और वह सिर्फ ईश्वर ही दे सकता है। मैने खुद को अपनी योग्यता का सही-सही अनुमान लगाया और इसे पचास फिसदी तक बढ़ा दिया फिर मैं अपने ईश्वर के हाथों सौंप देता था। इसी भागीदारी में मुझे वह सारी शक्तियां मिली जिसकी मुझे जरूरत थी और वास्तव में आज भी महसूस करता हुं कि वह शक्ति मुझमें बह रही है। यह प्रार्थना का परिणाम है। तभी तो महात्मा गांधी ने एक जगह लिखा है- ‘प्रार्थना की शक्ति के बिना मैं कभी का पागल हो गया होता।’
प्रार्थना का अर्थ अपनी आत्मा की अर्थात ईश्वर की उच्चतर शक्ति के पास पहँुचाना होता है। प्रार्थना जीवन के प्रति एक दृष्टिकोण है। यह स्वयं को समर्पण कर देना और वास्तविकता को स्वीकार करना है। जब शरीर और मस्तिष्क ब्रह्माण्ड की स्वरलहरियों से सामंजस्य में हों तब प्रेम की भावनाऐं उमड़ पड़ती है। प्रार्थना मांग नहीं है, सहज भाव से बिना किसी क्षुद्र मांग के परमात्मा को पुकारना है।
जहाँ व्यक्ति की सीमा समाप्त होती है, वहीं से परमात्मा की सीमा प्रारम्भ होती है। अर्थात जहाँ हमारे प्रयत्न वांछित परिणाम नहीं ला पाते हंैै, तब प्रार्थना करनी चाहिये। जब प्रयत्न की सीमा आ जाए तो प्रार्थना करो। प्रार्थना किससे करे व क्यों करे? उसकी विषयवस्तु क्या हो? स्वरूप क्या हो? यह सब सोच कर तय करें। इसमें हरेक को अपने लिए सर्वोत्तम तरीका खोजना होता है। इसमें भटकाव आते है, तो आने दीजिए। कोई प्रार्थना का बंधा- बंधाया तरीका नहीं है। वैसे प्रत्येक व्यक्ति की प्रार्थना अपने तरह की होगी क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के मानसिक बैंक में अलग-अलग धन जमा होता हैं। मात्र धन की मात्रा ही नहीं, धन का प्रकार भी
भिन्न – भिन्न होता है, मन में छिपे संस्कार एवं सोच भिन्न -भिन्न होते है। अतः प्रार्थना का तरीका व विषय अलग-अलग होते है। प्रार्थना करने से स्वयं पर भरोसा आता हंै, कार्य का भार घटता है, एवं अपनी भूमिका के तनाव से राहत मिलती है। निराशा एवं नकारात्मकता से राहत मिलती हैं, प्रार्थना करने से प्रसन्नता, भक्ति, कृपा, आशीष मिलते हैं जिससे हमारे तनाव घटते है। प्रार्थना पर बहुत वैज्ञानिक शोध हो चुके है। ‘हीलिंग वर्डसः दि पाॅवर आॅफ प्रेयर एंड द प्रैक्टिस औॅफ मेडिसिन’ में लैरी डोस्सी दावा करते हैं कि कभी-कभी प्रार्थना दवाओं और शल्य क्रिया से भी ज्यादा शक्तिशाली ढंग से काम करती है। जैसा डाॅ. अलेक्सिस करैल ने लिखा है- प्रार्थना की शक्ति ब्रह्माण्डीय गुरूत्वाकर्षण जैसी वास्तविक शक्ति है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो प्रार्थना करने पर हम ग्रहणशील होते हंै। हमारे मस्तिष्क के कम्पन अल्फा स्तर के कम्पनों से मिलते हंै जो कि प्रकृति की उच्च शक्ति के कम्पन्नो से मिलते-जुलते है। इससे हमारी क्षमता बढ़ जाती है। ड्यूक युनिवर्सिटी के मेडिकल सेन्टर, डरहम में 1998 में शोध से प्रकट हुआ कि प्रार्थना करने से 40 प्रतिशत उच्च रक्तचाप घटता है।
आधुनिक शोधों से यह भी पुष्ट हुआ है कि प्रार्थना किए हुए बीज जल्दी अंकुरित होते है। श्री मसारू इमोटो ने ‘‘द मैसेज फ्रोम वाॅटर’’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक में पानी पर प्रार्थना के कई प्रयोगों का वर्णन किया है। पानी को निम्न तापमान पर जमा कर उसके क्रिस्टलों के फोटो खीचे। इससे उनके क्रिस्टलों की रचना प्रकट होती है। श्री इमोटो ने फूजिवाड़ा बांध के पानी के निम्न तापमान पर जमे क्रिस्टलों के फोटो लिये। तब पानी के क्रिस्टल्स बिखरे-बिखरे थे । एक सामूहिक प्रार्थना का आयोजन करने के बाद इसी पानी को निम्न तापमान पर जमा कर उनके क्रिस्टलों के फोटो लिए तो वे निश्चित आकार में सुन्दर तरीके से जमे हुए मिले। यह प्रार्थना की शक्ति को दर्शाता है। प्रार्थना करने से स्वयं में शक्ति पैदा होती है। प्रार्थना जीने का उत्साह बढ़ाती है, यह स्वयं को प्रेरित करती है। प्रार्थना करने से व्यक्ति अस्तित्व से जुड़ता है। उसे अपनी त्वचा एवं शरीर के पार भी स्वयं के होने का बोध होता है। प्रार्थना एक भाव दशा है, अहोभाव है, कृतज्ञता ज्ञापन है, गीत है। यह मन को बल देती है।
अवचेतन मन की शक्ति जगाने का पारम्परिक तरीका प्रार्थना हैं जब आप ईमानदारी एवं दिल से किसी बात के लिए प्रार्थना करते हैं, तो आप अपने दिमाग में अपनी इच्छाओं के बीज बोते हैं। यह आपके विचारों को इच्छानुकूल स्वरूप देने में प्रवृत्त होती है। यही बीज भविष्य में जाकर कर्मो का खाद पानी पाकर वृक्ष बनता है। मेरी समझ में प्रार्थना का यही एक मात्र अर्थ है। अस्तु, आप होशपूर्वक उपलब्ध दशाओं की प्रार्थना रूपी बीज के होने से जानकारी प्राप्त करते हैं एवं इसी के अनुरूप योजना बनाते हैं। पश्चिम में इसे ही मानस दर्शन कहते हंै। प्रार्थना आपकेा तैयार करती है। परन्तु प्रार्थना चेतन और अवचेतन में सामंजस्य निर्माण करने वाली होनी चाहिए। तभी प्रार्थना से अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते है, तभी उन परिस्थितियों का निर्माण होता है जो आपके लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करती है। जो कुछ भी आपके अवचेतन मस्तिष्क में होता है वही जीवन में व्यक्त होता है। अवचेतन मस्तिष्क उन्नत बुद्धिमता का भण्डार है।
इस्लाम में भी दुआ मांगने पर बहुत जोर है। चर्च में भी प्रार्थनाएँ की जाती हैं। हिन्दु मन्दिरों में इसे पूजा- पाठ के नाम से करते है। गुरूद्वारों में भी कीर्तन के रूप में प्रार्थनाएँ ही की जाती है। प्रार्थना जिव्हा से की जा सकती है। दूसरा मन से यानि एकाग्रता एवं श्रृद्धा से भी की जाती है, लेकिन दिल से यानि समग्रता एवं समर्पणभाव से की गई प्रार्थना ही अधिक शक्तिशाली होती है।
परिवार के सभी सदस्य मिलकर प्रार्थना करें तो सदस्यों में परस्पर प्रेम बढ़ता है। तभी घरो में आरती करते समय सभी सदस्यों का उपस्थित होना जरूरी होता था।

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