दैनिक बाधाओं का निवारण :
दैनिक बाधाओं का निवारण :
1. शुद्ध रुद्राक्ष माला धारण करने से भूतादि की बाधा, अभिचार कर्म तथा अन्य दुष्प्रभावों से रक्षा होती है। वन, पर्वत, श्मशान, युद्ध भूमि, अपरिचित स्थान, संकटग्रस्त स्थान में आपका तन-मन सुरक्षित रहता है।
2. रुद्राक्ष को चंदन की भांति जल में घिसकर, इसका लेप शरीर में लगाने से भौतिक व्याधियों से शरीर की रक्षा होती है।
3. चंदन की भांति माथे पर लेप या तिलक करने से शिवकृपा मिलती है, लोगों पर सम्मोहन जैसा प्रभाव पड़ता है। माथे पर लगा लेप सिर की पीड़ा को दूर करता है।
4. उदर विकार : पांच रुद्राक्ष (पांच मुखी भी) एक गिलास जल में डालकर सांय को ढककर रख दें। वह जल खाली पेट पियें, पुनः गिलास को भरकर रख दें, दूसरे दिन प्रातः वह जल पियें वह गिलास या पात्र तांबे का ही होना चाहिए। यह क्रम प्रतिदिन चलता रहे। इस जल के सेवन से सुस्ती, अनिद्रा, आलस्य, गैस, कब्ज और पेट के सभी विकार दूर हो जाते हैं।
5. रक्त चाप : पांच रुद्राक्ष - (पंचमुखी हों,) उसके दाने या पूरी माला शरीर को स्पर्श करती हुई पहनें। इससे रक्त चाप (ब्लड-प्रेशर) नियंत्रित रहता है। उपर्युक्त जल पीने से भी लाभ होता है।
6. बाल-रोग : छोटे बालकों के गले में रुद्राक्ष के तीन दाने पहना दें। साथ ही, रुद्राक्ष को पानी में घिसकर चटायें। सोते समय छाती पर लेप भी करें। इस उपचार से रात के समय सोते-सोते रोना डरकर चौंक जाना, हाथ-पैर पटकना, नजर-दोष आदि सारी परेशानियां दूर हो जाती है।
7. बांझपन से छुटकारा : यदि स्त्री सभी प्रकार से मां बनने योग्य है तो यह उपचार उसे गर्भवती बना देता है। रुद्राक्ष का शुद्ध नया एक दाना और एक तोला 'सुगंध-रास्ना' खरल में कूट-पीस कर चूर्ण बनायें। यह चूर्ण 2-3 माशे-दोनों समय गाय के दूध के साथ दें। स्त्री के ऋतुमती होने के पहले दिन से शुरू करके लगातार सात दिन तक इस उपाय को करें। इस उपाय से बांझपन दूर होकर, स्त्री को गर्भ लाभ होता है।
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वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाए रखने के लिए घर में शास्त्रोक्त धुआं करना चाहिए। यह कोई सामान्य धुआं नहीं है। इसके लिए निम्न सामग्री का उपयोग किया जाता है। बाजार से किसी भी पूजन सामग्री की दुकान से लोबान, कपूर, गुगल, देशी घी और चंदन लेकर आएं। प्रतिदिन घर के मंदिर में भगवान की विधिवित पूजा-आरती के बाद गाय के गोबर से बने कंडे या उपले को जलाएं। अब थोड़ा लोबान, कपूर, गुगल, देशी घी और चंदन उस पर रख दें। जब धुआं होने लगे तब इस धुएं को पूरे घर में फैलाएं।
इस धुएं के प्रभाव से घर के वातावरण में मौजूद सभी सुक्ष्म कीटाणु नष्ट हो जाएंगे, हवा में पवित्र सुगंध फैल जाएगी। इसके अलावा घर की सभी नेगेटिव एनर्जी निष्क्रीय हो जाएगी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाएगा। आपके आसपास का वातावरण पूरी तरह पवित्र और शुद्ध हो जाएगा।
प्रतिदिन ऐसा होने पर सभी देवी-देवताओं की कृपा आप पर बनी रहेगी।
|| सूर्य कवच ||
सूर्य को प्रसन्न करने के लिए सूर्य कवच का पाठ एवं सूर्योदय के समय अर्घ्य नियमित रूप से दें।
याज्ञवल्क्य उवाच
श्शणुष्व मुनिशार्दूल! सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्वसौभाग्यदायकम्॥
देदीप्यमान मुकुटं स्फुन्मकरकुण्डलम्।
ध्यात्वा सहस्र किरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥
शिरो मे भास्कर: पातु ललाटं मेदमितद्युति:।
नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर:॥
घ्राणां धर्मघ्शणि: पातु वदनं वेदवाहन:।
द्धह्लह्नां मे मानद: पातु कण्ठं मे सुरवन्दित:॥
स्कन्धौ प्रभाकर: पातु वक्ष: पातु जनप्रिय:।
पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वांगसकलेश्वर:॥
सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भुर्जपत्रके।
दधातिय: करैरस्य वशगा सर्वसिध्दय:॥
सुस्नातो यो जपेत् सम्यग् योदधीते स्वस्थमानस:।
स रोग मुक्तो दीर्घायु: सुख पुष्टिं च वन्दति॥
याज्ञवल्क्य बोले - हे मुनिशिरोमणे! सूर्य के शुभ कवच को सुनो।शरीर को आरोग्य देने वाले और सब सौभाग्यों के दायक, देदीप्यमान, चमकते मुकुट और मकर कुंडल वाले सहस्र किरण रूपी इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए॥
मेरे सिर की रक्षा वे भास्कर करें। वे द्युतिरूप मेरे ललाट की रक्षा करें। नेत्र में दिनमणि तथा कान में वासर स्वामी रक्षा करें। सब गंधों में धर्म को ग्रहण करने वाले घ्शणि नाकों की और बदन की वेद रूपी वाहन वाले वे देव रक्षा करें। वे मानद रूपी मेरी जिह्ना की और मेरे कण्ठ की सुखंदित रक्षा करें। स्कन्धों की रक्षा प्रभाकर और वक्ष की रक्षा जनप्रिय करें। पैरों की द्वादशात्मा (12 सूर्य रूप) और सब अंगों की वे सकलेश्वर रूप रक्षा करें।
सूर्य रक्षा वाले इस स्तोत्र को भोजपत्र पर लिखकर जो धारण करता है, उसे सब सिध्दियां वश में होती हैं। जो स्नानपूर्वक बाद में जपता है या सम्यक् स्वस्थमन से जो धारण करता है, वह रोग मुक्त, दीर्घायु, सुखी व पुष्ट होता है
1. शुद्ध रुद्राक्ष माला धारण करने से भूतादि की बाधा, अभिचार कर्म तथा अन्य दुष्प्रभावों से रक्षा होती है। वन, पर्वत, श्मशान, युद्ध भूमि, अपरिचित स्थान, संकटग्रस्त स्थान में आपका तन-मन सुरक्षित रहता है।
2. रुद्राक्ष को चंदन की भांति जल में घिसकर, इसका लेप शरीर में लगाने से भौतिक व्याधियों से शरीर की रक्षा होती है।
3. चंदन की भांति माथे पर लेप या तिलक करने से शिवकृपा मिलती है, लोगों पर सम्मोहन जैसा प्रभाव पड़ता है। माथे पर लगा लेप सिर की पीड़ा को दूर करता है।
4. उदर विकार : पांच रुद्राक्ष (पांच मुखी भी) एक गिलास जल में डालकर सांय को ढककर रख दें। वह जल खाली पेट पियें, पुनः गिलास को भरकर रख दें, दूसरे दिन प्रातः वह जल पियें वह गिलास या पात्र तांबे का ही होना चाहिए। यह क्रम प्रतिदिन चलता रहे। इस जल के सेवन से सुस्ती, अनिद्रा, आलस्य, गैस, कब्ज और पेट के सभी विकार दूर हो जाते हैं।
5. रक्त चाप : पांच रुद्राक्ष - (पंचमुखी हों,) उसके दाने या पूरी माला शरीर को स्पर्श करती हुई पहनें। इससे रक्त चाप (ब्लड-प्रेशर) नियंत्रित रहता है। उपर्युक्त जल पीने से भी लाभ होता है।
6. बाल-रोग : छोटे बालकों के गले में रुद्राक्ष के तीन दाने पहना दें। साथ ही, रुद्राक्ष को पानी में घिसकर चटायें। सोते समय छाती पर लेप भी करें। इस उपचार से रात के समय सोते-सोते रोना डरकर चौंक जाना, हाथ-पैर पटकना, नजर-दोष आदि सारी परेशानियां दूर हो जाती है।
7. बांझपन से छुटकारा : यदि स्त्री सभी प्रकार से मां बनने योग्य है तो यह उपचार उसे गर्भवती बना देता है। रुद्राक्ष का शुद्ध नया एक दाना और एक तोला 'सुगंध-रास्ना' खरल में कूट-पीस कर चूर्ण बनायें। यह चूर्ण 2-3 माशे-दोनों समय गाय के दूध के साथ दें। स्त्री के ऋतुमती होने के पहले दिन से शुरू करके लगातार सात दिन तक इस उपाय को करें। इस उपाय से बांझपन दूर होकर, स्त्री को गर्भ लाभ होता है।
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वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाए रखने के लिए घर में शास्त्रोक्त धुआं करना चाहिए। यह कोई सामान्य धुआं नहीं है। इसके लिए निम्न सामग्री का उपयोग किया जाता है। बाजार से किसी भी पूजन सामग्री की दुकान से लोबान, कपूर, गुगल, देशी घी और चंदन लेकर आएं। प्रतिदिन घर के मंदिर में भगवान की विधिवित पूजा-आरती के बाद गाय के गोबर से बने कंडे या उपले को जलाएं। अब थोड़ा लोबान, कपूर, गुगल, देशी घी और चंदन उस पर रख दें। जब धुआं होने लगे तब इस धुएं को पूरे घर में फैलाएं।
इस धुएं के प्रभाव से घर के वातावरण में मौजूद सभी सुक्ष्म कीटाणु नष्ट हो जाएंगे, हवा में पवित्र सुगंध फैल जाएगी। इसके अलावा घर की सभी नेगेटिव एनर्जी निष्क्रीय हो जाएगी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाएगा। आपके आसपास का वातावरण पूरी तरह पवित्र और शुद्ध हो जाएगा।
प्रतिदिन ऐसा होने पर सभी देवी-देवताओं की कृपा आप पर बनी रहेगी।
|| सूर्य कवच ||
सूर्य को प्रसन्न करने के लिए सूर्य कवच का पाठ एवं सूर्योदय के समय अर्घ्य नियमित रूप से दें।
याज्ञवल्क्य उवाच
श्शणुष्व मुनिशार्दूल! सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्वसौभाग्यदायकम्॥
देदीप्यमान मुकुटं स्फुन्मकरकुण्डलम्।
ध्यात्वा सहस्र किरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥
शिरो मे भास्कर: पातु ललाटं मेदमितद्युति:।
नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर:॥
घ्राणां धर्मघ्शणि: पातु वदनं वेदवाहन:।
द्धह्लह्नां मे मानद: पातु कण्ठं मे सुरवन्दित:॥
स्कन्धौ प्रभाकर: पातु वक्ष: पातु जनप्रिय:।
पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वांगसकलेश्वर:॥
सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भुर्जपत्रके।
दधातिय: करैरस्य वशगा सर्वसिध्दय:॥
सुस्नातो यो जपेत् सम्यग् योदधीते स्वस्थमानस:।
स रोग मुक्तो दीर्घायु: सुख पुष्टिं च वन्दति॥
याज्ञवल्क्य बोले - हे मुनिशिरोमणे! सूर्य के शुभ कवच को सुनो।शरीर को आरोग्य देने वाले और सब सौभाग्यों के दायक, देदीप्यमान, चमकते मुकुट और मकर कुंडल वाले सहस्र किरण रूपी इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए॥
मेरे सिर की रक्षा वे भास्कर करें। वे द्युतिरूप मेरे ललाट की रक्षा करें। नेत्र में दिनमणि तथा कान में वासर स्वामी रक्षा करें। सब गंधों में धर्म को ग्रहण करने वाले घ्शणि नाकों की और बदन की वेद रूपी वाहन वाले वे देव रक्षा करें। वे मानद रूपी मेरी जिह्ना की और मेरे कण्ठ की सुखंदित रक्षा करें। स्कन्धों की रक्षा प्रभाकर और वक्ष की रक्षा जनप्रिय करें। पैरों की द्वादशात्मा (12 सूर्य रूप) और सब अंगों की वे सकलेश्वर रूप रक्षा करें।
सूर्य रक्षा वाले इस स्तोत्र को भोजपत्र पर लिखकर जो धारण करता है, उसे सब सिध्दियां वश में होती हैं। जो स्नानपूर्वक बाद में जपता है या सम्यक् स्वस्थमन से जो धारण करता है, वह रोग मुक्त, दीर्घायु, सुखी व पुष्ट होता है
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